Shreyansh kumar jain 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 48831 0 Hindi :: हिंदी
युवाओं की भीड हूँ मैं, पश्चिमी संस्कृति का शोर हूँ मैं प्रदूषण का कहर हूँ मैं, शहर हूँ मैं । भीड़- भाड से भरा हूँ मैं, शुद्धता से मरा हूँ मैं विस्फोटको से फटा कहर हूँ मैं, शहर हूँ मैं । हवाओं में जहर घोलता, सडकों पे रफ्तार देखता लडकियों पे हत्याचार देखता, हर सपनो का कहर हूँ मैं शहर हूँ मैं । पर्यावरण का नरसंहार हूँ मैं, कालोनियों बनाने का सार हूँ मैं, जंगलों को उजाडने का कहर हूँ मैं, शहर हूँ मैं। माँ-पिता के सपनो का कहर हूँ मैं, शहर की थर्डियो पे खुलेआम नशे में बिकता जहर हूँ मैं, अफवाहों को फैलाता जहर हूँ मैं, युवाओं के सपनो का कहर हूँ मैं शहर हूँ मैं ।