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शीर्षक (सुबह)

SACHIN KUMAR SONKER 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य GOOGLE शीर्षक (सुबह) 82196 0 Hindi :: हिंदी

शीर्षक (सुबह)
मेरे अल्फ़ाज़ (सचिन कुमार सोनकर)
रात्री कर पहरा खत्म होने को है,एक नई सुबह होने को है।
प्रातः काल की बेला है आयी, दृश्य मनोरम साथ है लायी।
सूरज ने ली है अँगड़ाई चंद्रमा की हो रही है बिदाई।
सूरज अपनी लालिमा के साथ धरती पर है आया ।
लाल-लाल लालिमा के साथ नदी में पड़ रही है सूरज की छाया है ।
सूरज आसमान में आया है,पड़ रही धरती पर उसकी छाया है।
सुबह सबेरे जब सूरज की किरणे धरती पर आती है, 
सूरज की किरणों के साथ ये धरती भी मंद-मंद मुस्काती है।
पेड़ो ने बाहें फैलायी फूल हँसे , मंद-मंद कलियाँ मुस्काई।
सूरज जब भी धरती पर आता है, आलस्य दूर भगाता है।
सूरज की किरणे नई उमंग नई तरंग है लाती, जीवन में एक उम्मीद की नई किरण है जगाती।
भौरे फूलों पर मँडराते है, पशु पंछी सब मिल कर गाते है। 
एक सुन्दर राग सुनाते है।
कोयल भी छिप कर पेड़ो पर कूक-कूक कर गाती है।
हम सबको सुबह होने का अहसास कराती है।
अँधियारा मिटा चारो तरफ हरियाली छायी।
नदी में लहरों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।
हुवा सवेरा छठा अँधेरा एक नई किरण धरती पर है आयी।
रात काली थी पर एक नई सुबह अपने साथ है लायी।
अन्धकार मिटा उम्मीद की एक नई किरण जीवन में है आयी ।

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