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शेर और आबादी

Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य शेर और आबादी 83296 0 Hindi :: हिंदी

उसके पूर्वज, सरपट दौड़ लगाते थे।
अठखेलियों संग, शिकार करना सिखाते थे।
दहाड़ से पूरा क्षेत्र, थर- थर‌ थर्राता था।
कभी दुबक, कभी लपक, कभी खर्राटा था।
हुंड जगह, बुलडोज़र दहाड़ गूंजने लगी।
सरजा हुंकार, आह आहट में डूबने लगी।
जंगल काट, दरिया पाट, बसा ली आबादी।
कॉलोनी, कॉलिज, पार्क का, उद्घाटन कर रही खादी।
भूख, प्यास से खलल दिमाग़ी, आ गया पुरानी बस्ती।
आबादी में घुसा जानवर, सांसो की अटकी कश्ती।
पकड़, जकड़, अकड़कर, दूर पहुंचाया है।
उसने क्या किया, अपने घर ही तो आया है।
वह कहां जाएगा?
एक दिन, फिर आएगा। 
एक दिन, फिर आएगा।

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