Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 13243 0 Hindi :: हिंदी
अगर मुस्कुरा भर दूं, अगर गुनगुना भर दूं, लोग सवालें चार पूछेंगे, "बात क्या है"? ये दिन-रात पूछेंगे। मैं अगर लिख देता हूँ, बातें कई हसरतों पर, अगर रवानी मसलों पर। खोज कर किसी क़िताब में, गुलाब के पत्तों की तरह। पता नही वो और क्या-क्या बूझेंगे- "बात क्या है"? ये दिन-रात पूछेंगे। कहीं सही से, यादों में अगर सांस भर लूं तो, चलते राहों पर, किसी को अदब से आदाब कर लूं तो। "अभिनव"औरों जितना मशरूफ़ नही है- इस दिये को हवा में जलता देख, पता नही वो खुद कितनी बार बूझेंगे। "बात क्या है"?ये दिन-रात पूछेंगे। मुझपर सवाल उठाने के लिए, पता नही और पीछे कितनी बार मुड़ेंगे। "बात क्या है"? ये दिन-रात पूछेंगे।