आकाश अगम 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #तलवार बोली न जाने क्या क्या #हिंदी कविता #सामाजिक कविता #तलवार की कहानी #the story of sword #hindi poetry #Akash Agam #आकाश अगम 48486 0 Hindi :: हिंदी
मैं चमकती धार युक्त तलवार हूँ प्यासी हूँ लहू की जैसा कहा करते सभी मैं नहीं हूँ देखती अपना पराया उच्च है या निम्न मेरी बला से घाव देती हूँ सभी को एक सा न जाने कितने सर उतारे धड़ से मैंने न जाने नहायी कितना लहू से न जाने उजाड़ा कितने घरों को मग़र फिर भी नहीं बुझती अधर की प्यास कर रही ये सब , चलो मैं मान लेती हूँ मग़र पूछूँ एक बात ? उत्तर दे सकोगे ? कहा मैंने कभी तुमसे मुझे बस चाहिए है रक्त ? कहा मैंने लहू के हेतु प्यासी हूँ ? मेरी नहीं थी प्रार्थना मुझको बनाओ मेरी न थी इच्छा समर में जान ले लूँ निर्बलों की , घर उजाडूँ पर हाय ईश्वर ! मैं बोल ही पाती नहीं असहाय हूँ कैसे बताऊँ ? रो रही हूँ हरिक पल। तुम सुन न सकते चीख मेरी पर बोलते हो समर में , तलवार मेरी बोलती है मुझको लड़ाते हो जबरजस्ती मेरे अपनों से मुझको अकेला छोड़ दो देखो कि क्या मैं काटती हूँ किसी को ? मेरे नहीं हैं पैर वरना भाग जाती। अब नहीं संग्राम देखा जा रहा पर क्या करूँ हैं कामनाएँ हृदय में कलुषित तुम्हारे करते उन्हें तुम पूर्ण , मुझ पर थोप देते दोष कि प्यास मुझमें थी जगी धार तुमने दी मुझे दोष क्या मेरा कि मैं हूँ काटती लेकिन कभी जब युद्ध का वर्णन ख़ून का बहना , आपत्ति का आना मनुज संहार को दिखाना है चाहता कवि उपयोग करता प्रतीक के रूप में उदाहरण के लिए - उसके शीश पर है लटकती तलवार। पर कौन देखे अश्रु मेरे कौन सुनता चीख बस दोष मढ़ते यह काटती है मारती है ख़ून की प्यासी न जाने क्या क्या।