Rupesh Singh Lostom 22 Jun 2023 कविताएँ समाजिक क्या पाया 4342 0 Hindi :: हिंदी
तनिक मुकाम पे पहुंच जाये फिर सुनाएंगे दास्ता सफर की क्या क्या छीन गया क्या पाया क्या खोया जटिल सफर में सांसे रुक रही थी कदम थक रहे थे आशमा आग उगल रही थी हौशला टूट रहा था बहुत बिघटनाए झेले बे सहाये कुरीतियां सहे समाज के असहाये पीड़ा मुस्कुरा बे वजह सहे