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टूटे दियों को जलाया जबसे-वो मेरे आंगन में आया जब से

Sudha Chaudhary 26 Jul 2023 कविताएँ दुःखद 8012 0 Hindi :: हिंदी

टूटे दियों को जलाया जब से
वो मेरे आंगन में आया जब से।

शाख से टूटते रहे हरदम
चमन को घर में बसाया जबसे।

उसकी तबीयत को देखकर रस्क होता है मुझे
अपने पहरे पर बिठाया जबसे।

जमाना देख कर ,सुनकर ,चुप रह लेता है
ठोकरें  कितनी मिली आवाज उठाया जब से।

कीमत नहीं जो मिल जाए जतन से यारो आसमान पाने की ख्वाहिश जबसे।

हैसियत है नहीं तुम्हारे आगे
उड़ने यूं ही लगे पंख आया जब से।

सुधा चौधरी
बस्ती

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