Savita singh 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक दरख़्त 16467 0 Hindi :: हिंदी
उम्र दराज दरख्तों को, आंगन में लगे रहने दो, फल दे ना दे , छांव बेहिसाब देगा । तुम बड़े हो जिस डाल के नीचे, तुम खेले हो जिस दरख़्त के पीछे । भूलों नहीं उसके रहमों -करम को , छेड़ो नहीं उसके जिस्मों-हरम को ।। तुम जड़ को छोड़कर पत्तों फलों में खो गए, तुम सच को छोड़कर झूठों के हो गए , सुनो........ जाओ बैठो एक बार फिर से , उस की छांव में । थक चुका है वह दरख़्त भी छाले लिए पांव में।। रह लो कुछ वक्त उस ढूंढे दरख़्त के नीचे, क्या पता.... कुछ कोपल ही निकल आए बिना तुम्हारे सींचे ।।