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विरह वार में जलते जलते-मैंने जीना सीख लिया

Sudha Chaudhary 30 Jul 2023 कविताएँ दुःखद 11016 0 Hindi :: हिंदी

विरह वार में जलते जलते
मैंने जीना सीख लिया ।
सपनों की कलियां ना टूटी
नहीं मिला मन चंदन
अरण्य बना जीवन धन
छूट गया मन आंगन
कहीं प्रभात ने मुंह फेरा
कहीं रात का सूनापन
चित्त चातक कुछ बोल ना पाए
कैसे सब कुछ छीन लिया।

विरह वार में जलते जलते
मैंने जीना सीख लिया।

तुम्हें तुम्हारा प्राण मिले
मेरा एकांत रहे दर्शन
तुम उल्लासों के दीप जलाओ
मुझे विरह की अग्नि
कांटो का पथ मेरा हो
तुम ही फूल पर सोना
तुम्हें स्वर्ग का द्वार मिले
मुझे अधूरी पृथ्वी
जननी का वह प्रेम तुम्हारा
तुम ही भात्र संग लड़ना
बहन तुम्हारी, पिता तुम्हारे
मेरा बस एक कोना
जाते जाते रही वेदना
मेरा सब कुछ बीन लिया ।

 विरह वार में जलते जलते
मैंने जीना सीख लिया।

सुधा चौधरी
बस्ती

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