Meenakshi Tyagi 04 Jul 2023 कविताएँ समाजिक Chanchal chauhan 7727 0 Hindi :: हिंदी
यह कैसा अन्याय है ये कैसा अत्याचार है ना मान है ना सम्मान है, बस हो रहा दुर्व्यवहार है काया की हर एक कोशिका में बस फैला व्यभिचार है, मानवता, मानवीय मूल्यों से यहां बस हो रहा व्यापार है, है अंतरात्मा तो सो गई बस मस्तिष्क का ही एक सार है, मस्तिष्क और हृदय दोनो ईश्वर के दिए दिव्य उपहार है पर दोनो के प्रयोग में अंतर है, क्या इसका नही किया विचार है, कितने दिन रहना है जगत में जो ऐसा हुआ आचार है, ये कैसी धन लोलुपता है क्यूं इंसान इसके आगे लाचार है, धन तो चार दिन की चांदनी है, अनुपम निधि तो हमारा व्यवहार है, गर है दया हृदय में और किसी का माना कभी आभार है, तो हो मनुष्य कहलाने योग्य तुम, और मनुष्यता ही इस जीवन का आधार है।।