Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Abhinav chaturvedi 23576 0 Hindi :: हिंदी
तुम डटे रहना उन राहों पर। कुछ गाते हैं, कुछ सुनाते हैं। कुछ बातों से ही दिल बहलाते हैं। कुछ हम जैसों की तरह ही फिर घुल-मिल जाते हैं। कुछ रोकेंगे, कुछ टोकेंगे। कुछ रोड़े भी बन जाएंगे। तुम डटे रहना उन राहों पर, लोग दीप समझ कर हवा दे जाएंगे। इस दिल के अंदर के मंजर टूटे से लगेंगे, कुछ यादों से फरियादों से मन उड़े से लगेंगे, तुम मनभावों को संचित कर -राहों पर अभ्यस्त ही रहना, लोग कहकर निकल जाएंगे- तुम मस्त ही रहना। लोग पुरानी यादों को समेट , तुम्हें हवा दे जाएंगे। तुम डटे रहना उन राहों पर ,लोग दीप समझ कर हवा दे जाएंगे। वो प्यार तुम्हारा-यार तुम्हारा, फिर मिल न पाएगा, टूटन दिल की धड़कन को, दूजा सील न पाएगा। सत्कार वाला चेष्ठा तुम्हारा व्यर्थ न जाएगा। लोग हर व्यंग्य से-हर ढंग से, नफऱत का नशा दे जाएंगे...। तुम डटे रहना उन राहों पर, लोग दीप समझकर हवा दे जाएंगे। प्यार क्या-व्यापार क्या, सब फरेबी मंझे से लगेंगे, दिन क्या- फिर रात क्या, सब अंधे जैसे ही लगेंगे, परिष्कार में तुम्हारे ,लोग भीरुता का टीका लगाएंगे। तुम डटे रहना उन राहों पर, लोग दीप समझ कर हवा दे जाएंगे।