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ज़ीवन एक यात्रा -सपने हो अधुरें लाख भले

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक " Life is a Journey " This poem has written on the base of struggle to achieve upto success way. And, In vastly place to poem dream's describe has been done to stay want of hope to success. I hope that this will be fill to yours well. Because this is a dream of poet and I am doing chalange that to it's lot of knowledge will be meet to you as before.And, By this poem has been seen that a person's life in every part happens a education and learning is merely a intelligent but import and export of knowledge with each other. Because any person never keep complete knowledge but every person something certainly is necessary knows. So that success is a Vasel of Struggle. And all the fect to include, I can say that..During, This poem to all the element and thinks has been binded as like, "Ocean has been filled to a Pitcher. " Jai Hind. 🙏 80394 0 Hindi :: हिंदी

सपने हो अधुरें लाख भले, 
हो लाख बाधांऐं बंधों का! 
नय्नों के स्वप्न से संघर्ष अज़र, 
है महा ज्ञान ये निबंधों का!! 
                          ये बंध - परिबंध को घेर रखे, 
                          करी काव्य कि महा सृष्टी! 
                          सपनों कि छाह और चाह के पथ, 
                          है पड़ी काव्य कि अल्प दृष्टी!!
धुली भी धरा कि गर पाये समीर, 
त्तो फ़ल्क कि घटा झु ज़ात्ता है! 
त्यों पा सपनें अवशर वक्तों का, 
वर्तमान लहरात्ता है!! 
                         हंस्तीं हैं हस्त्तियां लाख भले, 
                         सफ़लत्ता के नय्न स्वप्न ही बस्तें हैं! 
                         हंस्त्ती दुनियां जीन संघर्षकारों पर, 
                         अक्शर ईत्तीहास वो रचत्तें है!! 
सपनों का बीज़ अंकुरित्त हो कर, 
वर्तमान पथ चल - चल के! 
गर पुर्ण धरें ना चाह सफ़लत्ता, 
वज़ुद भविष्य को दे हल्के - हल्के!! 
                          हम थोड़ा - थोड़ा चाह भरे, 
                          सपनों का नगर बन जात्ता हैं!
                         ये स्वप्न ही है ज़ो चाहत्त को ज़गा, 
                         ज़ीवन को सार्थ बनात्ता हैं!! 
बनत्ती और ढलत्ती दिवश धार मे, 
क्या कहों चाह न विचली थी? 
है स्वप्न एक हर एक हृदय में, 
वो सफ़ल शक्श न जिसकि चाहत न मचली थी!! 
                           है काव्य धार का बंध स्वप्न, 
                           ये काव्य नहीं है नीबंध स्वप्न! 
                           नीज़ कथा सुनात्ता सपने का, 
                           संदेश! करों साकार स्वप्न!! 
ईक रात्त देखा मैने सपना, 
खुशिंयां छण भर को मचली थी! 
बादलों के बीच मुझे ऐसी लगी, 
मेरी अंत्तीम मंज़ील निकली थी!! 
                             निद्रा थी सुनहरी मै था मग्न, 
                             वो सुन्दरत्ता से चमक रही! 
                             उस क्षण था खुशी का पत्ता नहीं, 
                             मेरे अश्क खुशी के बेहक रही!! 
मैने सोंचा कि पकड़ लूं ज़रा, 
पर हांथ मेरे त्तो छोटे थे! 
ज़ब त्तक पहुंचां मंज़ील के निकट, 
वो पुन: बादल मे लिप्त्त हुए!! 
                             निराशा आशा को मिली पुन:, 
                             लौटा मंज़ील कि राहों से, 
                             चुप बैठ के बाहें मोड़ लिया, 
                             स्पनों कि विचलीत्त छांहों में!! 
क्षण बाद वो फ़िर निकली अम्बर पे, 
सित्तारों के बीच चम - चमा रही! 
मैनें सोंचा ये स्पना है, 
इसलिए मुझे बरगला रही!! 
                        मंज़ील के दैव ने सरल - सहज़,
                        पथ ग्मन मार्ग मुझे बत्ता दिया! 
                        संघर्ष के हारे हार मिले, 
                        आधी मंज़ील निष्ठा से त्तुने कमा लिया!!
है धरत्ती - अम्बर नाज़ है धरत्ती, 
रचने वालों ने हैं ईत्तीहास रचा, 
ज़ीसने है किया विरोध कर्म का, 
स्वयं कर्मों से है विनाश रचा!! 
                        भय कि भयभीत्त अंधियारों में, 
                        ज़ब स्वप्न विकाश का सुर्य बने! 
                        त्तब किरण है बनत्ता कर्म मनुज़ का, 
                        आर्दश कि नीव समान अग्नित्त हो ज़ले!! 
गर दर्द हो त्तो दयावान बनों, 
गर निष्ठा त्तो परवान बनों! 
गर प्रेम हृदय में बने चाह, 
त्तो वशुधा पर इंसान बनो!! 
                         ज़ाकि है भावना रहत्ती ज़ैसी, 
                         गुण - गाण वो वैसा गात्ता है! 
                         क्षंगभंगुर विनश्वर काया, 
                         कर्म अमर रह ज़ात्ता है!! 
मंज़ील कि छोर और स्वप्न ज़हां मे, 
आशा और निराशा समान चले! 
ज़ो आए वशुधा पर कुछ करने को, 
उन द्विव्य नय्न में स्वप्न पले!! 
                           सपना अपना और चाह त्तनिक, 
                           बस एक कर्म पाना वज़ुद! 
                           राहें मंज़ील और दैव सखा, 
                           हर राहीं कि मंज़ील पाना वज़ुद!! 
मंज़ील के देव सफ़लत्ता को, 
संघर्षों कि त्तेज़ से वंचीत्त न देख सका! 
वें कहें कर्म, हां! कर्म - कर्म बस करत्ता चल, 
बहकावें में कदम क्यों रोक लिया? 
                           ये सपना है या हक्किकत्त है, 
                           गर सत्य त्तो सच हो जाना है! 
                           नेकि के कदम त्तु बढ़ात्ता चल, 
                           खुशीयों के मंच को पाना है!! 
गम में आंशु कि धार बहे, 
खुशीयां संघर्ष ज़ीलाएगी!
ये अश्क त्तेरे संघर्षों का, 
क्या करना है याद दिलाएगी!! 
                        स्वपन बनी थी कथा मेरी, 
                        मै मौन वो बात्तें करत्ती थी! 
                        ईक रात्त, हां! रात्त देखा मैने सपना
                        खुशींयां छण भर को मचली थी!! 
उत्थान - पत्न हैं नियम प्राकृत्ती, 
सुर्य ऊदय - अस्त्त है दिखलात्ती! 
इस क्षण समरूप मुझे ऐसी लगी, 
कि.. मेरी अंत्तीम मंज़ील निकली थी!! 
                          हर ऊंच - नीच के पथ पे ग्मन, 
                          कर नीर गीरें ज्यों पर्वत्त से! 
                          गीर कर भी त्तरंगीत्त धरा कि धार, 
                          पुज़ा ज़ात्ता हैं कर्मों से!! 
त्यों मानव मन कि अचल विवेक, 
को थाम काव्य दिखलात्ता है! 
और ज़ीवन का मार्ग इक यात्रा है, 
ये काव्य मेरा दर्शात्ता है!! 
                          स्पनों के पिछे दौड़ - दौड़, 
                          साकार स्वपन संघर्षों का! 
                          सपने हो अधुरें लाख भले, 
                          हो लाख बाधांऐं बंधों का! 
ज़ो बाधा के आगे नहीं झुका, 
त्तो झुकि बंध डालने वाले! 
ज़ो हर शै को हर्शात्ता है चला, 
उन कर्मों का हास है उजियाले!! 
               ये स्वपन संग जीवन का मार्ग, 
               है नहीं रचीत्त कुछ छन्दों का! 
               नय्नों के स्वप्न से संघर्ष अज़र, 
               है महा ज्ञान ये निबंधों का!! 
Poet    :   Amit Kumar Prasad
कवी     :   अमित्त कुमार प्रशाद 🤝
কবী     :   অমিত কুমার প্রশাদ

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