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हिन्द धरा का अनमोल रत्त्न-कैसा हिन्द कैसी आज़ादी

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is on the base of Chandra Shekhar Azad's Life.During this poem has been said that..How he prepared a revolutionary and how,He has been prepared first Hindustan Republic Association of member on 1921Ad.And after when he has been prepared foundation of Human Socialist Republic Association. Than he play a important role as the face to Comander In Chief during this poem every moment has shown according to part by part and Azad did not his real name their real name was Chandra Sekhar Tiwar according to their father name as Sitaram Tiwari but when on 1921Ad, When he has been catch in hand of British force his answer has been given to judge that " Name is our Azad and my father is Azadi" After the join of HRA( Azad Hind Army) all India will be saying him Chandra Sekhar Azad and in other sentence, you can understand he has been familiar with it name.He taken born on 23 July 1906Ad.He did a great patriotic person in it no any doubt. And to this description will be give some sentence in this position of a excellence poet Gya Prasad Sukala" Snehi" that.. " जो जीवित्त ज़ोश जगा न सका उस जीवन मे कुछ सार नहीं, जो चल न सका संसार संग उसका होत्ता संसार नहीं! जो भरा नहीं हैं भावों से बहत्ती जीसमे रसधार नहीं वो हृदय नहीं हैं, पत्थर हैं, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं!".And most of love to all my reader who give to staying me love & to both of my poetry from begin. Jai Hind. 🙏 78454 0 Hindi :: हिंदी

वर्षा कि बुन्द गीरी झम्मर - झम्मर, 
रत्नेश धार झनझना रहें! 
प्राकृत्त वनों पर सन्नन - सन्नन, 
पवन झटा नीज़ चला रहें!! 
                         गीर रही गीरी के उच्च शीखर से, 
                         झरनों कि धार छन्नन छन - छन! 
                         आज़ादी के इस स्वर्ण अम्बर पर, 
                         सित्तांरें जगमग टिमटिमा रहें!! 
शहाद्दत्त के सित्तारें टिमीर - टिमीर, 
जगमगा धरा पर नाज़ धरें! 
हम कल के कर्म को दे के नमन, 
आज़ादी मे कर्म पर नाज़ धरें!! 
                          हर लय हर धुन में एक ही वादन, 
                          अभीवादन सूर से साज़ धरा! 
                          है महा कर्म के श्रम का दामन, 
                          ज़ो ली आज़ादी थाम धरा!! 
धरा है धरनी, धरा है भरनी, 
सुज़ला सफ़ला मात् है वन्दों का! 
है सफ़ल कर्म का अभीनंदन, 
मात्रभूम हिन्द के नन्दों का!! 
                       फ़िर, सूर से सुर और त्ताल से त्तुलसी,
                       बालमिकी परिर्वत्तन से! 
                       चाहत्त से मीरा और चाह रहिम, 
                       रसखान काव्य है वन्दन से!! 
फ़िर पहन त्तीरंगा बांध सूरों को, 
ज़ीसने वशुधा आज़ादी को! 
चल दिए अनल पथ अग्निवीर बन, 
है नमन वीर बलिदानों को!! 
           ठहरों  ✋ अभी चल चीत्र बांकि हैं  👇
कि... शिखर था चन्द्र आज़ादी का, 
आज़ाद दिलों में बस्त्तें थें! 
मुंछें थी उनकि अभय दान, 
जीनको वें हरपल कस्त्तें थें!! 
                      ब्राह्मण कुल के संस्कृत्त मेधावी, 
                      भीलों ने था छद्म नाम दिया! 
                      निशानेबाज़ी के अचुक प्रकाष्ठक, 
                      नीष्ठा क्षत्रीय और वर्ण ब्राह्मण था!! 
त्तीथी ईधर - उधर सन् उन्नीस बीस , 
असहयोग का पत्र थें बांट रहें! 
सन् उन्नीस ईक्किस, पन्द्रह कि उम्र में, 
थें लाए गऐं अदालत्त में!! 
                       मात्ता जगरानी पित्ता सीत्ताराम, 
                       के पुत्र धरा के भक्त बड़े! 
                       थी दर्द धरा कि रोम - रोम, 
                      अशुलों के थें पर शक्त बड़ें!! 
दरबार कि देख में न्यायधीश ने, 
आज़ाद से परिचय मांगा जब! 
क्या नाम त्तुम्हारा, कौन पित्ता, 
और कौन त्तुम्हारी मात्ता हैं? 
                         रहत्तें हो कहां और क्या करत्ते हो, 
                         और कहां त्तुम्हारा ठिकाना है? 
                         आज़ाद ने फ़िर मुह खोल दिया, 
                         दिल कि हसरत्त को बोल दिया!! 
आज़ादी ईत्तीहास सुमरत्ती है, 
ज़ो बचप्पन मे उन्होंने मोल दिया! 
जी.. नाम हमारा है आज़ाद, 
और पित्ता मेरा आज़ादी है!! 
                         मात्ता है भारत्त धरा मेरी, 
                         काम स्वाधिन्त्ता दिलवानी है! 
                         और अत्ता - पत्ता भारत्त वशुधा, 
                         स्वाधिन कर के दिखलानी है!! 
न्यायधिश रोश मे आ कर के, 
उम्र मुत्ताबिक न्याय धरें! 
बोलें सैना को पन्द्रह बेंत्त, 
मार उसे जाने देने!! 
                         नग्न बदन पर बेंत्त पड़ रहीं, 
                         उखड़ रहा त्तन का चमड़ा! 
                         हर  बेंत्त पे सैनीक  कांप रहें, 
                         आज़ाद कह रहें जय भारत्त मां!! 
        जय भारत्त मां जय- जय - जय - जय - जय भारत्त मां!! 
निकलें जब बाहर कारागार से, 
लत्त - पत्त रक्तों का बदन लिए! 
श्पथ ले लिऐं मरना है नहीं, 
विदेशी शाशन के बन्दुंकों से!! 
                            मन उखड़ गया फ़िर उदारवाद से, 
                            उग्रवाद हृदय मे पनप ऊठा! 
                            हिन्दुस्त्तान प्रजातंत्र संघ, संघ जा बैठे,
                            जहां ईंट का जवाब पत्थर से था!! 
दिल साफ़ हृदय अशुलों से भरा, 
नारी पर हाथ न उठात्तें थें! 
ईक रोज़ खड़े पिस्टल के समक्क्ष, 
बिस्मिल्ल खां खिंच उन्हें बचाऐं थे!! 
                             भुज़ा बनात्तें चौड़ी इत्तनी, 
                             रक्क्षा का धागा पड़ी लघु! 
                             बंधे न फ़िर बहन ने पुछा,
                             यें भुज़ा बनाई चौड़ी क्युं!! 
आज़ाद ज़वाब दे गर्वित्त हो कहें, 
भुज़ा ने भार वत्न का धारा है! 
ईन भुज़ा पड़ेगी हत्थकड़ी भी छोटी, 
स्वाधिन्त्ता सम्मान हमारा है!! 
                             ज़ोगी के रूप धरने मे माहिर, 
                             सरकार उन्हें कभी फ़िर धर न सकि! 
                             इक त्तरफ त्तीलक इक त्तरफ़ चन्द्र, 
                             आत्तंक शाशन के हृदय रहीं!! 
दोनों के नाम बहुमुल्य ईनाम, 
थे आश आज़ादी मात्ता के! 
फ़िर बने गढ़ हिन्दुस्त्तान सामाजीक प्रजातंत्र संघ, 
के सैना - प्रमुख स्वतंत्रत्ता सफ़ल करने!! 
                           भगत्त का, कि हर पथ पे समर्थन, 
                            राय के प्रत्तीसोध या चौरी - चौरा! 
                            बटुकेश्वर और विस्मिल्ल खां,
                            या फिर प.राम प्रशाद विस्म्मिल्ल!! 
ईक रोज़ धरा का प्रेम दिखा, 
जो शायद कभी न देखा हो! 
भारत्त और मां का एक जगह, 
सम्मान स्नेह का देत्तें थें वों!! 
                       जब कहा सखा ने चन्द्र शीखर से, 
                       धन से है कोषागार भरा, 
                       वहां भुखें हैं मां - बाप त्तुम्हारे कुछ पैसे भी, 
                       उन्हें नहीं दे सकत्तें क्या? 
आज़ाद कहें मेरे भी हैं, 
और बाकिं के भी हैं मात् - पित्ता! 
कर रहें स्वत्नत्रत्ता को जीवन अर्पण, 
वे दो रोटी उन्हें नहीं खिला सकत्तें क्या? 
                          फ़िर कैसा हिन्द, कैसी आज़ादी, 
                          इत्तना जो वत्न के लिए न करें! 
                          गुलाम ही रहना ऐसे समाज़ का, 
                          मानवत्ता जीस हृदय न पलें!! 
ले न्यनों में अक्श का धार कहें, 
हो विचलीत्त भारत्त के लाल कहें! 
गर वो सेवा न करेंगें कहों, 
मेरी दो गोली सेवा कर जाएंगें!! 
                          हर कर्ज चुकात्तें हृदय उदार कर,  
                          पर वत्तन प्रस्त्तीं के आगे पस्त्त हुए! 
                          वो बन अधीर फ़िर भारत्त के चरण पर, 
                          बन सींह पुन: प्रसस्त्त हुए!! 
आज़ाद ज़ोगी का वेश धरें, फ़िर;
गए कारागार भगत्त को भगाने को! 
भगत्त न माने देश प्रेम के पथ पर, 
कहें बसन्त्ती चोला रंगवाने को!! 
                       चन्द्र शेखर थे स्वयं संस्था, 
                       आदर्श बना हृदय मे संघ जिनका! 
                       पर सैना - प्रमुख्य का फ़र्ज था उनकों, 
                       पल - पल हर पल विचलीत्त करत्ता!!
लेकर भगत्त रिहाई गुहार ले त्तिरस्कार,
उदारवाद शरण से गए बिखर! 
फ़िर चलें पार्क वो अल्फ्राबेडेड, 
संगत्त से घात्त खा गए उधर!! 
                           सुखदेव राव ने दिया घात्त, 
                           जहां घेर सैना ने मार्च लिया! 
                           शेखर छिप गए वृक्ष के पिछे, 
                           फ़िर वहां चार्ज पे चार्ज हुआ!! 
चन्द्र शीखर बन अढ़े रहें, 
सींह सा त्तेज़ दे मुछों पर! 
त्तीन गीराऐं बांकिं सब घायल, 
अन्त्तीम स्लाम निज़ मस्त्तक पर!!
                             ब्राह्मण कि सत्यत्ता नौनिहाल वचन, 
                             न चुके निज़ धड़ को चढ़ाने से! 
                             आज़ाद ज़ीए आज़ाद मरे, 
                             शहाद्दत्त दे कर नज़राने में!! 
जीस जगह मार गोली माथे पर, 
चन्द्र शेखर भारत्त मात्ता के वीर हुए! 
भय मिटा नहीं था हृदय से, 
थरथरा रहें सिपाही छुने से!! 
                          वो जला दिए सम्पुर्ण वृक्ष,
                          ले मिट्टी बोत्तल मे भर - भर कर! 
                          सर्व लोग करत्ते थे मस्त्तक पे त्तीलक, 
                          आज़ादी कि प्रत्तिक्क्षा कर - कर - कर!!
आज़ाद मरें आज़ादी के लिए, 
आज़ादी भारत्त का आभुष्ण! 
कर्म वत्तन का है आर्दश, 
आज़ाद भारत्त के अनमोल रत्न!! 
                          पा आज़ाद पुत्र मां का आंचल, 
                          गर्वित्त कण - कण भारत्त कि धरा! 
                          पित्ता का गर्व उस अम्बर सा, 
                          जिसपे लहरा पश्चात्त् ध्वज त्तीरंगा!! 
चन्द्र शीखर सी आज़ादी, 
भया दिप्त्त फ़िर कण - कण में! 
कि... शिखर था चन्द्र आज़ादी का, 
आज़ाद दिलों में बस्त्तें थें!! 
                         बस्त्ती थी आज़ादी जीन कण - कण में, 
                         कष्टों मे पराक्रम धार कर हंस्त्तें थें! 
                         मुंछें थी उनकि अभय दान, 
                         जीनको वें हरपल कस्त्तें थें!! 
हैं त्याग, सर्म्पण और अर्पण, 
ले स्वत्तंत्र हिन्द कि फ़िज़ा रहीं! 
वर्षा कि बुन्द गीरी झम्मर - झम्मर, 
रत्नेश धार झनझना रहें!! 
                           और सभ्यत्ता का ईत्तीहास प्रेम कि, 
                           उत्कंठा से लहलहा रहीं! 
                           भावों से प्रेम और श्रद्धा से, 
                           साहित्य प्रेम भी लुटा रहीं!! 
ये रहीं निरत्त करने मे चाह, 
ज्यों चाह राह का संगम नीभा रहें! 
त्तब..प्राकृत्त वनों पर सन्नन - सन्नन, 
पवन झटा नीज़ चला रहें!! 

Poet    :-   Amit Kumar Prasad
कवी     :-   अमित्त कुमार प्रशाद 👆
কবী     :-   অমিত কুমার প্রশাদ

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