Santoshi devi 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक Google 124503 0 Hindi :: हिंदी
गुजर सकेंगे हर दिन सब बेकार के। मौसम आएगें ये जल्द बहार के।। भूल गए कष्टों को सपना जान के। खुश होंगें पल सारे रोज गुजार के।। जश्न मनाते है हर कोई जीत पर। आभारी भी होते हम तो हार के।। दिल को लगता अपना कोई खास जब। हर बाते मन जाती बिन तकरार के।। ये गाड़ी ये बँगले कैसे मायने। कायल हम केवल सच्चे दीदार के।। खिलते रहते पुष्प सदा ही स्नेह के। वारे-न्यारे होते दिल गुलजार के।। सुख-दुख के साथी जो पहरेदार है। "संतोषी" प्यासे क्या वे मनुहार के। संतोषी देवी शाहपुरा जयपुर राजस्थान।