Santosh kumar koli 17 May 2023 कविताएँ समाजिक स्व शगूफ़ा 5460 0 Hindi :: हिंदी
कली को स्वतः स्वच्छंद, ज़रा खिलने दो। खुद को खुद से, ज़रा मिलने दो। जो जैसा है, वैसा, ज़रा बनने दो। मन को मन की, ज़रा सुनने दो। तोड़ो, मरोड़ो मत, गुल्म, ज़रा बनने दो। सफ़क़ शगूफ़ा- सा, ज़रा मलकने दो। उन्मुक्त हवा में, ज़रा लहराने दो। प्रकृति को प्रकृति से, ज़रा मुस्कराने दो। बल से नहीं, कल से, ज़रा बनने दो। आज को कल से, ज़रा मिलने दो। तोड़ो मत, डाल पर ही, ज़रा फलने दो। डाल को भी माल से, ज़रा लदने दो। हवा के झोंकों को, ज़रा सहने दो। मन में उमंग, ज़रा बहने दो। मन में उमंग, ज़रा बहने दो।