Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बेरोज़गारी 14268 0 Hindi :: हिंदी
भारत भविष्य का रेला है। यह, बेरोज़गारों का मेला है। ये आए दिन का हाल है। पानी बोतल, बैग में चड्डी, बनियान रुमाल हैं। कोई सुबह जल्दी आया, कोई ठोंक रहा ताल है। किसी के साथ पिता, पति किसी की गोद में लाल है। दुनिया की इस भीड़ में, हर व्यक्ति अकेला है। यह, बेरोज़गारों का मेला है। परिवार, प्रशासन, खुद, खुद की आंखों में खटकते। बस, स्टेशन, सड़क, गली दिखते फिरते भटकते। परीक्षा केंद्र तक पहुंचते, बैठे, खड़े, लटकते। कोई ट्रेन आगे, कोई छत से छलांग, कोई गरल गटकते। परीक्षा से ज़्यादा, केंद्र पर पहुंचना झमेला है। यह, बेरोज़गारों का मेला है। किसी की शादी हो न रही, किसी का लग्न अटका रस्ते में। कभी अमृत, बत्ती हत्थे, कभी वेकन्सी ठंडे बस्ते में। कोई तीस, चालीस का, की़मती उम्र निकल गई सस्ते में कभी सरकार, कभी कोर्ट कचहरी के हस्ते में। पता नहीं किस मुका़म, पहुंचेगा यह गैला है। यह, बेरोज़गारों का मेला है। भारत भविष्य का रेला है। यह, बेरोज़गारों का मेला है।