akhilesh Shrivastava 18 Dec 2023 कविताएँ समाजिक मां के आंचल की महिमा 11062 0 Hindi :: हिंदी
*। मां का आंचल* मां ने आंचल फैलाकर प्रभु से हमको पाया है। आंचल में छुपाकर मां ने नौ माह कोख में पाला है।। मां का आंचल पकड़कर हमने अपना पैर जमाया है अपने आंचल से ढककर मां ने हमें दूध पिलाया ।। अपने आंचल से हवाकर मां ने हमें सुलाया है मां के आंचल की छांव में सुकून नींद का पाया है।। आंचल में छुपाकर मां ने मौसम से हमें बचाया है हमारे सुख की खातिर मां ने आंचल फैलाया है।। आज नहीं है जिनकी भी मां उन्हें मां की याद सताती है उनके आंचल की यादों में नींद नहीं फिर आती है।। आंसू तो बह निकले हैं मां नहीं पोंछ मैं पाता हूं तेरे आंचल के बिन मां मैं यूं ही इन्हें सुखाता हूं।। रचयिता अखिलेश श्रीवास्तव एडवोकेट जबलपुर
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...