कवि सुनील नायक 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य गांव पर कविता 8890 0 Hindi :: हिंदी
भारत बसता है गांव में, अंत में रहना पड़ेगा गांव में, शुद्ध भोजन शुद्ध हवा है, ना आवश्यक हमको दवा है, घंटों बतियाते पीपल की ठंडी छांव है, सबसे प्यारा दियातरा मेरा गांव है। खेत और खलिहानो कि वो महक, सुबह उठा देती है वो चिड़िया की चहक, आंटी अंकल नहीं काका काकी कहते हैं, पिज़्ज़ा बर्गर नहीं फली , बाजरा खाते हैं, गिल्ली डंडा और कंचा खेलते पहले मेरा दांव है, सबसे प्यारा सबसे न्यारा दियातरा मेरा गांव है। माटी मे सोंधी सोंधी खुशबू आती हैं, गर्मी में भी ठंडी ठंडी हवाएं आती है, टेडी मेडी एक पगडंडी मेरे खेत तक जाती है, अत्यंत सुंदर लगती है जब सरसों फूलों से भर जाती है, कच्चे कच्चे रास्ते हैं न बजती खडांव है, सबसे प्यारा दियातरा मेरा गांव है। धरा है सुशोभित फसलों से, नभ है सुशोभित बादलों से, खुले खुले यहाँ मकान है, बाजार की चकाचौंध नहीं, मिलता सब कुछ एकाध दुकान है, पींपल पर कोयल बोले कौवे की कांव-कांव है, सबसे प्यारा सबसे न्यारा दियातरा मेरा गांव है। पब्जी गेम नहीं दादी नानी की कहानी है, प्रकृति भी इस गांव की दीवानी है, पेड़ों की सर सर में न जाने कैसी शहनाई है, यहाँ धरती मैं भी बेहद तरुणाई है, खुले खेतों में दौड़ते उनके नंगे पांव है, सबसे प्यारा सबसे प्यारा मेरा गांव है। - सुनील कुमार नायक