पांच पर्वों का समाहार है दीपावलीः
जिस तरह फूलझड़ियों की लड़ियां बनाई जाती है, दीपों से दीपमालाएं बनती है, उसी तरह पांच पर्व मिलकर दीपावली कहलाती है।
प्रथम पर्वः दीपावली का आरंभ कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष के त्रयोदशी से होता है, जिसे धनतेरस कहा जाता है। धनतेरस में आरोग्य व धनधान्य के देव धन्वंतरि की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन घर-गृहस्थी से जुड़ी सामग्री व आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस में धरद्वार में रंगोली सजाकर तेरह दीये जलाये जाते हैं और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है।
द्वितीय पर्वः दीपावली का द्वितीय पर्व चतुर्दशी को होता है, जो नरक चैदस या रुप चैदस भी कहलाता है। घर के सदस्य हल्दी के उबटन लगाकर स्नान करते हैं। शाम को चैदह दीये जलाये जाते हैं। इसे छोटी दीवाली भी कहा जाता है।
तृतीय पर्वः सच पूछो तो यही असली दीपावली है, जिसका इंतजार सबको सालभर रहता है, जो कृष्णपक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली को भारत में ही नहीं, विदेशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन पूजा का श्रीगणेश गणेशजी और लक्ष्मीजी की पूजा से की जाती है। जिस स्थल पर पूजा की जाती है, वहां शुभ-लाभ सिंदुर-तेल से लिखा जाता है। फल-फूल और मिठाइयां चढ़ाई जाती हैं। शक्ति के अनुसार नए कपड़े या धुले हुए कपड़े धारण किए जाते हैं। घर व आफीस के प्रत्येक कोने में दीये या मोमबत्ती जलाये जाते हैं। माता लक्ष्मी की पूजा कर बड़ों का पैर छुकर आशीर्वाद लिया जाता है।
चतुर्थ पर्वः चतुर्थ पर्व शुक्लपक्ष की प्रतिपदा का होता है। इसे अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भी कहा जाता है। इस दिन विविध प्रकार के व्यंजन बनाकर गोधनों की पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें पकवान्न खिलाई जाती है।
पंचम पर्वः पर्वों के पर्व का यह अंतिम पर्व है, जिसे भाई दूज कहा जाता है। यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ करता है। बहनें अपने भाइयों को टीका लगाती हैं और उनकी लंबी उम्र व सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इसके एवज में भाई, बहन को जो भेंट करता है, उसकी स्मृति उसको जीवनभर संबल प्रदान करती है।
विशेषः दीप-पर्व पर पटाखे फोड़ने का रिवाज बना दिया गया है, जो प्रदूषण को फैलाने में अहम रोल अदा करता है। अतः, वायु-प्रदूषण और कोरोना संक्रमण के विस्तार के दृष्टिगत पटाखों को न फोड़ना ही समझदारी कही जा सकती है।
–00–