Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

बेटे को समझ नहीं आता- भाव बाप होने का

Santosh kumar koli ' अकेला' 07 Sep 2023 कविताएँ समाजिक समझ का समय 12211 0 Hindi :: हिंदी

बेटे को समझ नहीं आता,
भाव बाप होने का।
समझता जब बनता बाप,
क्या डर है फिर खोने का?
बहू समझ नहीं पाती,
भाव सास होने का।
खुद बनती सास तब समझती,
अब काम सिर्फ़ रोने का।
ससुर भाव समझता,
जब खुद घिरता इस घेर से।
समझ में आता है, पर देर से।
समझ नहीं पाती ननद,
भाव भाभी होने का।
खुद बनती भाभी तब समझती,
रोना करहंज फ़सल बोने का।
समझ नहीं पाती भतीजी,
भाव बुआ होने का।
खुद बुआ बनती तब समझती,
काम अमिट कालिख धोने का।
बुढ़ापा समझ में आता,
बुढ़ापे के फेर से।
समझ में आता है, पर देर से।
किसी को समझ नहीं आता वक़्त,
वक़्त होने का।
वक़्त गए फिर समझाता,
अब न दहलीज़ न कोने का।
किसी को समझ नहीं आता,
भाव ज़िम्मेदार होने का।
ज़िम्मेदारी लदती तब समझता,
क्या फ़ायदा फिर पोने का।
मैं से वह का भाव समझता,
जब लुढ़कता उम्र ढेर से।
समझ में आता है, पर देर से।
समझ में आता है, पर देर से।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: