संदीप कुमार सिंह 01 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5013 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) घर के रहे न घाट के, थोड़ा अब तो सोच। चलें सँभल कर अब जरा,रहे नहीं संकोच। मैया नैया पार कर,जीवन कर गुलजार_ बढ़े बुद्धि में तेज अब, वाणी में हो लोच। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....