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विषमता का जाम

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक विषमता का जाम 96533 0 Hindi :: हिंदी

यह है विषमता का जाम।
पी -पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।

जो गंवार हैं, वे शुद्ध गंवारू रूप में पीते हैं।
पढ़े-लिखे थोड़ा, पानी मिला लेते हैं।
जो जैसे पीते हैं, वैसे ही बहकते हैं।
पर पीकर जाम सब, मदमस्त रहते हैं।
यह नशा नहीं उतरेगा, उतरे चाहे चाम।
पी -पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।
जब पुरखों ने जाम लिया, वे थे अनजान।
मद पागुर ने देश डुबाया, इतिहास करे बखान।
यह नशा यदि नहीं होता, अलग ही होता जहान।
अब तो समझो हर दृष्टि से, नशा करता है नुक़सान।
सभ्य दिमाग़ भी नशे में, छोड़ देता है काम।
पी -पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।
यह है विषमता का जाम।
पी-पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।
एक नशेबाज़ का, हाल देखो पड़ोस परिवार।
एक नशाख़ोर कई जिंदगियां, करता तार-तार।
खाने-पीने सोचने, हर सरगम में नशे की मार।
यहां हर प्याले से पस्त, कैसे पड़ेगी पार।
यहां हर दिमाग़ नशे से जाम, है हर याम।
पी-पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।
जो नशा मुक्त समझते, वे ज़्यादा नशा करते हैं।
चुनाव में जातिगत समीकरण से, पर्चा भरते हैं।
बेशर्म हर कर्म, नशे का ज़हर घोलते हैं।
जनता का जांगर करते ज़ाया, खुद हरी -हरी चरते हैं।
नशे की चुनट में सरकार भी, नंगी है खुद के हमाम।
पी-पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।
यह है विषमता का जाम।
पी-पी पागल हो रहे, दुनिया के लोग तमाम।


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