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ज़ालिम जींदगी

Vikram Bahadur 30 Apr 2024 कविताएँ अन्य 592 0 Hindi :: हिंदी

ज़ालिम जींदगी हमें ये गम दे गई। 
हमें मुकदर में कई बेहिसाब सितम  दे गई। 
नम है ये आंखे
इन आँखों में मेरे ख़्वाबों को ले गई 
मुकमल ना हुआ जो ख्वाब इन ख़्वाबों को ये कफन दे गई 
ज़ालिम जींदगी हमें ये गम दे गई रुक्सत ना हुई जो आरजू वो आरजू को क्यू ये जन्म दे गई।

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