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MAHESH

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@ mahesh
, Uttar Pradesh

साहित्य संगीत व कला केवल मनोरंजन का साधन मात्र नहीं है अपितु यह व्यक्तिव परिष्कार व जनजागरण की सबसे महत्वपूर्ण प्रभावी विधाएं हैं! साहित्य संगीत कला विहीन:, साक्षात् नर पशु पुच्छ विषाणहीन:! राजर्षि महाराज भर्तृहरि द्वारा रचित यह श्लोक उक्त संदर्भ में पुख्ता प्रमाण है! अस्तु मेरा भी कुछ ऐसा ही प्रयास है, उम्मीद है आप मेरी रचनाओं का आनंद लेंगे और विश्वास है कि साहित्य लाइव के मंच पर मेरी रचनाओं का यथार्थ मूल्यांकन हो सकेगा! सादर प्रणाम!🙏 ~✍️ महेश

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स्वरचित रचना--- किसी से कोई प्यार नहीं करे....! संदर्भ---प्यार-मोहब्बत दिल देता है रो-रो दुहाई, किसी से कोई प्यार न करे! बड़ी महंगी पड़ेगी ज read more >>
स्वरचित रचना--- वह तो मजदूर है ....! संदर्भ--- मजदूर जिनकी पेशानी के बल पर इस संसार की संरचना होती है। ऐसे उन असंख्य मजदूरों की पीड़ा में य read more >>
स्वरचित रचना- ए हिन्दुस्तान है,.............। संदर्भ---राजनीतिक व्यंग ए हिन्दुस्तान है, जहां न्याय टिका सबूतों पर, सबूत लाओ, तभी सरकार यहां स read more >>
स्वरचित रचना---जिंदगी न सही,................! संदर्भ---गम ए जुदाई जिंदगी न सही, तू मौत ही बनकर आ जा। आ मगर‌ आ,तू इक बार तड़प कर आ जा आज बादल उमड़ पड़ read more >>
स्वरचित रचना- कुछ मन की, कुछ मन के विचार! संदर्भ-अजनबी प्यार ! *देखा न हाय रे, सोचा न हाय रे! रख दी निशाने पे जान! कदमों में तेरे निकले मेरा read more >>
स्वरचित रचना- कहा राधा ने इक दिन, बांसुरी से.... संदर्भ--- प्रेम कहा राधा ने इक दिन, बांसुरी से, सुन ऐ बांसुरी? read more >>
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