Prashant Kumar 10 Apr 2023 ग़ज़ल प्यार-महोब्बत 5853 0 Hindi :: हिंदी
जो लोग मिरे नाम से महबूब रहे हैं वो हल्का ए आगोश में तो खूब रहे हैं। कुछ ना मिला तो उसने मिरा नाम लिखा है खाली न कभी हाथ के मकतूब रहे हैं। उससे कहो अब बंद करे अश्क बहाना दीवार ओ दर देख सभी डूब रहे हैं। क्यों एक भी आंखों ने तिरी बात न जानी हम सामने नजरों के तिरी खूब रहे हैं। तू कैसा सुखनवर है जो आने से पहले ही महफिल मे तिरी लोग बता ऊब रहे हैं। प्रशांत कुमार