Preksha Tripathi 24 Jun 2023 कविताएँ दुःखद 6068 1 5 Hindi :: हिंदी
हूँ व्यथित आज मैं सोच के यह, कि कल क्या, कैसा, क्यूँ, होगा? क्या जो है आज, वही कल होगा? या फिर भाग्य ही मुह मोड़ेगा? मेरे उर की उथल पुथल में, फंसा चक्र है जीवन का। कब चमकेगी मेरी किस्मत? इंतजार है , उस दिन का।। जीवन का दस्तूर है यह, कि जब जो चाहा नहीं मिला। तब पाया मैंने जब टूट गया मेरी उम्मीदों का किला।। टूटी प्राचीर भरोसे की, ढह गए बांध इच्छाओं के। मिला मुझे सुख क्षणिक मात्र तब तक समय चक्र ही चले गए।। है बना हृदय में प्रश्न आज मेरा भविष्य कैसा होगा? हूँ व्यथित आज मैं सोच के यह कि कल क्या कैसा क्यों होगा? प्रेक्षा त्रिपाठी प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
9 months ago