कवि सुनील नायक 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद हम पंछी आजाद गगन के, हम पंछी उन्मुक्त गगन के 83093 0 Hindi :: हिंदी
खुले गगन में विचरण मुझे करने दो, गुलामी नहीं सह सकता, अब मुझे मरने दो। मै पंछी आजाद गगन का , अब मुझे उड़ने दो। मै बादाम नहीं खाता , मुझे कटूक निंबोरी खाने दो। मुझे आजाद गगन में जीने दो। मेरे सपने, सपने रह जायेंगे, हमे उन्मुक्त गगन में जीने दो। कनक -कटोरी की बजाय, हमे नदी का पानी पीने दो। स्वर्ण -पिंजर में मेरे पंख टूट जाएंगे, हम पिंजरबध्द न गा पाएंगे। हम पंछी आजाद आसमान के , हमें तरू की टहनी पर रहने दो। तिनके तिनके से तरु पर , हमे आशियाना बनाने दो। हम पंछी आजाद गगन के, हमे आजादी से जीने दो। हमे स्वतंत्र गगन में उड़ने दो, हमे भू पर गिरे दाने चुगने दो। हमे उन्मुक्त गगन में जीने दो, हमे आजाद गगन में जीने दो। उड़ता फिरू गा ता चलू इस आजाद गगन में, हमे जीने दो इस मस्त चमन में। - सुनील कुमार नायक