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विभाजन की विभीषिका-कैसे भूल सके है भारत

Preksha Tripathi 22 Jun 2023 कविताएँ देश-प्रेम 6320 1 5 Hindi :: हिंदी

कैसे भूल सके है भारत
चौदह अगस्त का वह अशुभ क्षण। 
दो सौ वर्ष गुलामी झेली
अब कैसे झेल सकेगा विभाजन।। 
एक ओर जब भारत को
आज़ादी का दर्पण दिखना था। 
वीर सपूतों के द्वारा जब
पितरों का तर्पण दिखना था।। 
तब वहीं त्वरित ही भारत का
ज़र्रा ज़र्रा कुम्हलाया था। 
जब उन बेटों का हुआ विभाजन
जिनको एक कोख ने जाया था।। 
वैमनस्यता की हर एक ईंट
तब ज़ार ज़ार ज़र्राई थी। 
जब नफ़रत और हिंसा की सीमा
लोगों ने पार कराई थी।। 
भारत माँ का गला, यूँ दर्द भरे
आँसुओं से रुन्ध कर रह गया। 
जब भारत की अखंडता का शैल, 
विखंडन के शैलाब में, 
खंड खंड हो ढह गया।। 
भारत विभाजन की विभीषिका से
वीभत्स कलम के आँसू न रुक पाए थे। 
जब बँटवारे के ईमान ने
स्याही की बूंद बूंद बँटवाये थे।। 

व्यथित लेखनी से
  प्रेक्षा त्रिपाठी

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VIVEK KUMAR PANDEY
VIVEK KUMAR PANDEY Bahut sundar

10 months ago

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