Rupesh Singh Lostom 18 Aug 2023 कविताएँ अन्य आओ न 15072 0 Hindi :: हिंदी
आओ न चलो फिर से थोड़ा जी लें खुशियों को ख़ुशी भर जी लें चलो उस लम्हो को सच कर लें निर्दोष पल को निर्दोष बन जी लें वो कल बड़ा ही अजीब था मगर खुशियों के करीब था जो बीत गया वो कल था पर आज से बे खबर था चलो फिर से उसी गलियों में जहा बचपन के दिन थे आओ न आज को कल से छल दे कबडी चिकनियाँ खेल रगड़ दे बहुत सत्ता हैं रुलाता हैं आज क्यों न इसे मिल के मसल दे चलो न फिर से वही पे जहा कभी खुशनुमा खुशियों भरा पल थे