Savita singh 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक एक मां की कहानी 9952 0 Hindi :: हिंदी
ताउम्र जिस घरौंदे को , संवारने में निकाल दी । सब उड़ चले मुझे भी, निकलने की सलाह दी। जाओ..... सब के सब मर्जी तुम्हारी, आंखों में दिख रही खुदगर्जी तुम्हारी । रह लूंगी मैं तन्हा इस दरों -दीवार में , जीत भी मेरी है मेरी इसी हार में । अपने बनाए वसूल पर ही अब उम्र गुजार दूंगी... बस........ तुम कोई घरौंदा न बनाना अपने तजुर्बे से तुम्हें यही सलाह दूंगी ।। ताउम्र जिस घरौंदे को संवारने में गुजार दी। सब उड़ चले मुझे भी निकलने की सलाह दी..... सविता सिंह