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सोच

Santoshi devi 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक Google 178903 0 Hindi :: हिंदी

उजड़ गई बस्तियां बहुत सी है बनाने से पहले।
थोड़ा सोच लेना दिल किसी का दुखाने से पहले।।

करते हादसे घायल जिंदगी बसर तक यारों।
कैसे जी सका वह पूछ हस्ती मिटाने से पहले।।

पाले किस कदर थे अरमान दिन रात एक करे होंगे।
खुद पर आजमा कर भी देख तो सुखाने से पहले।।

पल भर में जला दे सोच लेते हो साख उम्र भर की यों।
कुछ तो कर तपन का भान आशा उगाने से पहले।।

हँसना सहज है फुटपाथ पर गठरी बनी उस मजबूरी पर।
करके तो बता बसर जाजम पर  बिताने से पहले।।

छींटे जो उछाल रहे भर अँजुली तुम कहां बच पाओगें।
गैरों को नजर भर देखना तो गिराने से पहले।।

बिलख रही कुटी वह भूख से जब लिवाला था छीना।
बीती सोच  कैसे रात  खुशियां मनाने से पहले।।

चलते हो किमत तुम आदमी की लगाकर "संतोषी"।
बिक कर देख खुद मोल तेरा क्या चुकाने से पहले।।

संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।

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