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कफ्फू चौहान बोल रहा हूँ

नरेंद्र भाकुनी 23 Feb 2024 कहानियाँ अन्य कफ्फू चौहान, उत्तराखंड, योद्धा, seo 1908 0 Hindi :: हिंदी

""हर प्रेम सुधा बरसाने को

मै सुर सरिता का आवाहन करू।
 हे उपगढ़ पति ,   हे गढ़ नरेश
समर्पण कफ्फू चौहान भरू।""

उत्तराखंड की भूमि बड़े-बड़े सूरवीरों को जन्म देता है, जिस की महानता संपूर्ण भारतवर्ष में सुविख्यात है आज भी ये पर्वत जोकि हिमगिरी के गौरव अभिमान की चर्चा करता है क्योंकि हमें किसी मुकुट की जरूरत नहीं है, इतना बड़ा मुकुट हमारा हिमालय है बड़े-बड़े लोग यहां घूमने आते हैं फिर भी हम सभी को प्रणाम करते हैं सभी का वंदन करते हैं ये है उत्तराखंड की भूमि।

कहीं हिमगिरि अपना शीश मुकुट
कहीं झरनों की झंकार है।
ये उत्तराखण्ड की वादी हैं
जहां प्रकृति का श्रृंगार है।

भारतवर्ष के उत्तराखंड में गढ़वाल क्षेत्र में एक महान गढ़पति
था जिसका नाम अजय पाल जो परमार वंश के राजा आनंदपाल के पुत्र थे, उस समय राजा अजय पाल ने कई गढ़ पतियों को हराकर अपना वर्चस्व कर लिया उस समय बड़े-बड़े राजाओं के मस्तक राजा के समक्ष झुकते थे ।
जिनका बसेरा उस समय चांदपुर गढ़  में  था।
जो कि  गढ़वाल क्षेत्र में परमार वंश के वास्तविक संस्थापक थे उन्होंने अपने वंश को बहुत आगे बढ़ाया।

""परमार वंश का गौरव है
जिसके नदी में गंगा बहती।
महाकाल का तेज है जिसमें
उसी भाव से सरस्वती कहती।""

ये उस समय की कहानी है जब महाराज अजय पाल का राज्याभिषेक सप्त नदियों से जल मंगाया गया, बड़े-बड़े राजा अजय पाल जी के लिए बहुत से उपहार लाए थे, सभी राजा राजा के लिए ( कटक) सैन्यकर भी लाए थे।

उस समय चांदपुर गढ़ में एक ही नारा गूंज रहा था वो था राजा अजय पाल की जय हो। सारे राजा वहां उपस्थित थे शिवाय एक राजा के वो  थे उपगढ़पति कफ्फू चौहान।
राजा अजय पाल को बहुत बड़ा क्रोध आया और उन्होंने ठान लिया कि अब इस तलवार का रक्त लाल मैं कफ्फू चौहान से लाल करूंगा।

राजा अजय पाल ने पहले अपने सैनिक से संदेशा भेजा। राजा का सैनिक कफ्फू चौहान के उप गढ़ मैं गया।
उसको राज दरबार में प्रस्तुत किया गया और फिर उससे कहा संदेशा सुनाओ।

उस पत्र में साफ-साफ लिखा था कि यदि तुम हमारी अधीनता स्वीकार कर लेते हो तो हम तुम्हें क्षमादान देंगे नहीं तो तेरे उप गढ़ में रक्त की नदियां बहा दूंगा।

राजा कफ्फू चौहान ने साफ-साफ कह दिया कि_

""वीर मर जाते हैं लेकिन झुका नहीं करते।
जंगल में शेर को देखो 
शेर मर जाते हैं लेकिन घास नहीं खाते।""

ऐसा कहने पर जब सैनिक ने अपने राजा अजय पाल को यह वृत्तांत सुनाया  तो राजा आग बबूला हो गया उसकी आंखें लाल हो गई और उसने ठान लिया कि अब तो युद्ध होकर ही रहेगा।

""गढ़पति  को जिसने निराश किया
आज उसको मैं मिटा दूंगा।
उस चीज में इतना गर्व
काटकर अपनी चरण में झुका दूंगा।""

राजा अजय पाल की सेना ने चारों ओर से कफ्फू चौहान के किले को घेर रखा था अचानक जब खिड़की से उसकी मां ने देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गई और उसने अपने पुत्र से कहा_

तू तो मेरा एक सहारा
कैसे जाने  दूं रण में।
शरण चले जा उस राजा के
युद्ध मिटेगा कुछ क्षण में।

कफ्फू चौहान उत्तर देता है_

”"सच्चा छत्रिय हूं मैं, तेरा पुत्र, लाल हूं।
पल-पल बदल जाए, कैसा जंजाल हूं।
घायल गंभीर  करूं ऐसे शत्रु सेना को
लगता कहीं पर स्वयं महाकाल हूं।""

पहले तो कफ्फू चौहान ने नदी के किनारे फूल को नष्ट कर दिया लेकिन अजय पाल के सैनिकों ने नया पुल बनाने की कोशिश की और जैसे ही कोशिश की  कफ्फू चौहान ने उन पर धावा बोल दिया।

वहां की धरती पर एक महान संग्राम छिड़ गया कफ्फू चौहान ने बड़ी बहादुरी दिखाई और उनको मार डाला लेकिन वहां पर किसी ने गलत खबर उसकी मां को दे दिया और मां उसके परिवार ने अग्नि  मैं प्रवेश कर दिया।

जब कफ्फू चौहान को पता चला तो उसने मुंडन किया कई ज्योतिषाचार्य ने कफ्फू चौहान से कहा कि तुम मुंडन मत करना लेकिन अपनी मां के लिए तो करना ही था।

ऐसा सुनने से अजय पाल खुश हुआ और उसने फिर से आक्रमण कर दिया उस समय कफ्फू चौहान को बंदी बनाया गया।
राजा अजय पाल ने अपने सैनिक से कहा इसका सर काट कर मेरे चरणों में गिरा दो लेकिन  उस समय कफ्फू चौहान ने अपने मुंह में  बालू भर दिया और अजय पाल के समक्ष नफरत से मुस्कुराने लगा जैसे ही सैनिक ने उसका सर काटा  वो  सर राजा अजय पाल के सर पर टकराया और नदी में चला गया।

राजा अजय पाल ने उस महान योद्धा को प्रणाम किया और कहां _"शेर तुम मुझे बहुत मी जाएंगे लेकिन कफ्फू चौहान जैसा शेर दिल वाला नहीं मिलेगा।""

राजा अजय पाल ने नदी के किनारे उसका दाह संस्कार अच्छी तरह किया।

"धन्य जवान कफ्फू चौहान"

आज उत्तराखंड के कई नेता अपने महान कार्यो को गिनाते हैं लेकिन अगर कफ्फू हो चौहान की महानता उनके दिलों में घर कर जाती शायद ये उत्तराखंड महान ही नहीं बल्कि महानतम बन सकता है। फिर भी हमारा आत्म गौरव है कि अपने स्वाभिमान की सदैव रक्षा करनी चाहिए जो हमें कफ्फू चौहान ने  सिखाया ।

हे विधाता आज तुझसे
खिल चुकी मेरी भावना।
आज तुझसे कह रहा हूं
मांगा मैंने कामना।
मुझको ये वरदान दे दो
सादगी का मान दे दो।

मेरी माता मुझसे कहती
आज वादा तुम निभाना।
खून सारा अपना देकर 
आज मुझको ये बताना।
आज ये अरमान दे दो।
मान दे दो, फरमान दे दो।

सरहदों से पूछता हूं
बोलता हूं, सोचता हूं।
ख्वाहिशों के राज सारे
खोलता हूं , खोजता हूं।
धड़कनों में जग चुकी थीं
आज वो आवाज दे दो।
ताज दे दो, नाज़ दे दो।

आसमां भी आज कहता
ये धरा हैं, बादलों का।
नायकों की टोली सजती
आस सारी महादलों  की।
रक्त सारा अपना देकर
आज ये बलिदान दे दो।
तन में, मन में ये जीवन में
खेत में खलिहान दे दो।

उन शहीदों की शहादत
 वो भी मुझसे कह रहे।
हम रहे या ना रहे पर
देश पहले तू रहे।
 आज मुझको जुनून दे दो।
खून दे दो, सुकून दे दो।

हमें भी ऐसे प्रेरणा स्त्रोत से सदैव सीखना चाहिए कि हम अपने आत्मसम्मान की रक्षा करें चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो लेकिन अपनी मातृभूमि के लिए प्राण देना एक गौरव, की बात होती है हमें सदैव भारतवर्ष के गौरव की आत्म चिंता होनी चाहिए।
किसी वीर की वीरगति सदैव अमर रहती है जो कि हमसे यह कह जाती है कि मैं अभी जिंदा हूं और कफ्फू चौहान कह रहा होगा।

""कफ्फू चौहान बोल रहा हूं ""

 - नरेंद्र सिंह भाकुनी

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