Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक जितेन्द्र शर्मा की कहानी। प्रेरक कहानियां। पहला उपन्यास। प्रतिशौध या प्रायश्चित। 8210 0 Hindi :: हिंदी
प्रायश्चित या प्रतिशोध (खण्ड-3) दिल्ली में जनवरी का मध्य भाग भयंकर ठंड का समय होता है। तीन दिन से कोहरे के कारण सूर्य के एक पल भी दर्शन नही हुए थे। ऐसा प्रतीत होता था मानो ठंड के कारण सब कुछ जम जाएगा। विपिन चन्द्र को ऐसे प्रतिकूल मौसम में भी चैन कहां? लड़की की आत्मा उनके लिए एक अनसुलझी पहेली बन गई थी। दूसरी ओर जो उस लड़की या उसकी आत्मा ने बताया था, उसकी सच्चाई को भी जानना आवश्यक था। इन तीन दिनो में उन्होंने शाहनवाज खान और उसके बेटे के बारे में बहुत सी नई बातें जानी। शाहनवाज खान एक प्रतिष्ठा प्राप्त राजनेता था। उसकी अपनी पार्टी व अपने क्षेत्र में बड़ा मान था। यद्यपि उसने बहुत कम समय में धन व यश प्राप्त किया था, जिससे लोग उसकी इस सफलता को संदिग्ध मानते थे, और उसके बारे में अनेक प्रकार की बात करते थे। कुछ भी हो इस समय वह एक सफल राजनेता के साथ-साथ सफल व्यवसायी भी था। व्यवसाय के रूप में वह अपना एक बहुत बड़ा बिजनेस अंपायर खड़ा कर चुका था। राजनीतिक गलियारों में उसका बड़ा मान था। उसका सबसे बड़ा कारण था कि वह अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के हर सुख दुख में खड़ा हो जाता था। कार्यकर्ताओं के लिए तो वह मसीहा की तरह था। उनकी हर विपदा में उनके साथ होना वह अपना सबसे बड़ा दायित्व समझता था, और यही एक बात उसको सफल राजनेता सिद्ध करती थी। यद्यपि लोग कहते थे कि उसके अधिकतर कार्यकर्ता गुंडे और मवाली हैं तथा बहुत से बुरे कामों से जुड़े हुए हैं। वे यह सब अनैतिक काम शाहनवाज खान के संरक्षण में करते हैं। लेकिन वह सदैव उनका साथ देता था। इस प्रकार वह एक दबंग राजनेता की छवि बनाने में सफल हुआ था। उसकी इस छवि के कारण ही उससे कोई पंगा लेना पसंद नहीं करता था। वह लगातार तीन बार अपने क्षेत्र से विधायक बन चुका था तथा इस समय मंत्री पद पर आसीन है। *** मंत्री का बेटा असद खान एक बिगड़ा हुआ रईसजादा है। उम्र लगभग तीस वर्ष, शादी हो चुकी है, दो बच्चों का पिता है। फिर भी ऐसा कोई बुरा काम नहीं जिसे असद खान न करता हो। कई बार फंस चुका है लेकिन बाप के कारण साफ बच जाता है। अनेक महिलाओं से सम्बन्ध रहे हैं और अभी भी जारी हैं। प्रत्येक नशा कर लेता है हर समय गुण्डों से घिरा रहता है। पिता की राजनीतिक धमक के साये में उसके गुनाहों की सूची लम्बी होती जा रही थी लेकिन उसे न कोई पश्चाताप है और न कोई परवाह। ये सब जानकारियां थोड़े से प्रयास से ही विपिन चंद्र को मिल गई थी जिससे उन्हे विश्वास हो गया था कि मोहनी ने जो आरोप शाहनवाज खान व उसके बेटे पर लगाया है वह सच ही होगा। अब उन्हें दूसरी पहेली हल करनी थी। उन्होंने विचार किया कि क्यों न अपनी इस समस्या में किसी मित्र को सम्मिलित किया जाय। बहुत देर तक वह यह सोचते रहे की अपने इस राज में किस मित्र को भागीदार बनाया जाए। दांपत्य जीवन में पुरुष का पत्नी से अधिक निष्ठावान व विश्वासपात्र मित्र कोई नहीं होता। अतः विपिन चंद्र ने अपनी पत्नी को भागीदार बनाने का निश्चय किया। उन्होंने मोहिनी के विषय में बात करने के लिए अपनी पत्नी माधवी को बुलाया। माधवी ने पति के पास आकर उत्सुकतावश पूछा-"कुछ नया लिखा है क्या?" विपिनचंद्र जब कुछ नया लिखते तो सबसे पहले माधवी को सुनाकर उसका परामर्श लिया करते थे अतः माधवी ने यही समझा था कि वह कोई अपनी नई रचना सुनाना चाहते हैं। "नहीं! कुछ और बात है! बैठो, मुझे तुमसे दूसरे विषय में बात करनी है!" विपिन चंद्र ने गंभीर स्वर में कहा। "क्या बात है? आज आप कुछ चिंतित दिखाई देते हैं?" माधुरी ने अपने पति की गंभीर मुद्रा देखकर आश्चर्य से पूछा। "ऐसी कोई बात ! तुम व्यर्थ में ही चिंता करती हो! बैठो बताता हूं।" विपिन चंद्र ने मुस्कुरा कर कहा तो माधवी अपने पति के पास बैठ कर उत्सुकता से उनकी ओर देखने लगी। "तुम्हें याद है माधुरी चार-पांच दिन पहले रात में दस बजे तुम किसी की आवाज सुनकर यहां आई थी?" विपिन चंद्र ने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा। "हां मुझे धोखा हुआ था कि कोई आपसे मिलने आया था! लेकिन यहां कोई नहीं था! इसलिये आपने मुझे वापस भेज दिया था। उस रात की बात कर रहे हैं न ?" माधवी ने पूछा। "हां उसी रात की बात कर रहा हूं। वास्तव में मैंने तुमसे झूठ बोला था। जब तुम यहां आई थी तो कमरे में एक युवती थी।" "क्यों मजाक करते हैं लेखक महोदय!" माधवी ने अविश्वसनीय स्वर में कहा। "इस आयु में ---------? जब आपकी उम्र थी तभी मेरे अलावा तुम्हें किसी ने घास नहीं डाली।" पत्नी ने मजाक किया। विपिन चंद्र थोड़ा मुस्कराये व हंसकर बोल-"बच्चे कहीं बाहर गए हैं क्या? "हां अभी कुछ देर पहले ही बाजार गए हैं। आप जानते हैं कि आज रविवार है। बेटे की छुट्टी थी तो बहु और बच्चों को शोपिंग कराने ले गया है।" "तभी तो चुहल सूझ रहा है!" विपिनचंद्र हंसे और बोले-"उस दिन सच में यहां इसी कुर्सी पर एक सुंदर युवती बैठी हुई थी, लेकिन तुम नहीं देख पाई।" "क्या बात करते हैं जी? यदि यहां कोई होता तो मुझे क्यों ना दिखाई देता! आप जानते हैं की मुझे अभी भी सब कुछ साफ साफ दिखाई देता है!" "क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? माधवी ने आश्चर्य व्यक्त किया। "तुम भूत, प्रेत, आत्माओं पर विश्वास करती हो?" विपिनचंद्र ने पुनः प्रश्न किया। "यह बात आप क्यों पूछ रहे हैं? क्या वह कोई भूत प्रेत थी?" "बताता हूं, पहले वो बताओ जो मैंने पूछा है।" "मेरे पिता कहा करते थे कि संसार में जिसकी चर्चा होती है वह प्रत्येक चीज किसी न किसी रूप में धरती पर होती ही है। और मुझे अपने पिता की बात पर अखण्ड विश्वास है।" माधवी ने उत्तर दिया। "ठीक है! तो सुनो वह लड़की एक आत्मा ही थी। इसी कारण वह तुम्हें दिखाई न दी थी।" विपिनचंद्र ने रहस्योद्घाटन किया तो माधवी सन्न रह गई। कुछ समय तक वह कुछ न कह सकी फिर स्वयं को सम्हालते हुए बोली-"मुझे तुम्हारी यही बात अच्छी नहीं लगती है जी। इतनी खतरनाक बात को भी तुमने मुझसे और बच्चों से छुपाया। अगर आपको कुछ हो जाता तो हम क्या करते? बताओ वह यहां क्यों आई थी? और आपसे क्या चाहती थी?" माधवी ने कुछ नाराजगी भरे शब्दों में कहा। "मुझे मालूम था कि तुम यह सब सुनकर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया करोगी। इसीलिए मैं तुम्हें यह सब नहीं बताना चाहता था। मैं नहीं चाहता कि मेरा परिवार किसी झंझट में पडे। किंतु सोचता हूं कि मैं सब कुछ तुमसे साझा करूं और तुम से सलाह लेकर ही आगे कुछ करने का विचार करुं। इसलिये मैं सारा घटनाक्रम तुम्हें बता रहा हूं किन्तु चाहता हूं कि यह बात हम दोनों के बीच रहे। बच्चे इस सबसे अलग रहें तो अच्छा रहेगा।" विपिनचंद्र धीमे स्वर में बोले। उनकी पत्नी ने उनकी बात से सहमति व्यक्त की और विपिनचंद्र सारा घटनाक्रम माधवी को बताते चलें गये। *** क्रमस: