akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग इंसान के जीवनकाल में इतने बदलाव होते हैं कि समय कब निकल जाता है हमें पता ही नहीं चलता 6657 0 Hindi :: हिंदी
*कब आ गया बुढ़ापा* मुझे अपनी जवानी पर बड़ा ही जोश था । कब ढल गई जवानी पता ही नहीं चला।। कैसे समय निकल गया पता ही नहीं चला । कब आ गया बुढ़ापा पता ही नहीं चला।। अभी कुछ सालों पहले मेरा जन्म हुआ था। माता पिता के घर में बड़ा जश्न हुआं था।। बीता हमारा बचपन बड़े शान और शौकत में । कब आ गई जवानी पता ही नहीं चला।। जवानी की उम्र में अभी कदम ही रखा था। कालेज में कब आ गया पता ही नहीं चला जवानी के दिनों में मेरा बहुत गर्म मिजाज़ था। परिवार में मेरा अकेला ही रौब था।। मोहल्ले की लड़कियों को रिझाते ही रह गये। कब शादी हो गई मेरी पता ही नहीं चला।। शादी के बाद बोलती मेरी बंद हो गई। शेर गीदड़ कब हो गया पता ही नहीं चला।। शादी के समय बीबी मेरी ऐश्वर्या राय थी । वो टुनटुन कब हो गई पता ही नहीं चला।। मैं भी तो जितेन्द्र से कोई कम नहीं था। असित सेन कब हो गया पता ही नहीं चला।। राजेश खन्ना जैसे मेरे घने बाल थे। डेविड मैं कब बन गया पता ही नहीं चला।। स्मार्ट जवानी मेरी लड़कियों में चर्चित थी। बात करने मुझसे लड़कियां तरसती थीं। कब ढ़ल गई जवानी पता ही नहीं चला। कब गालों में पड़ी झुर्रियां पता ही नहीं चला।। कब आ गया बुढ़ापा पता ही नहीं चला।।। रचयिता -अखिलेश श्रीवास्तव जबलपुर
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...