Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कहानी घर-घर की 34524 0 Hindi :: हिंदी
बोलना चाहिए पिता, पर बेटा बोलता है। पिता-पुत्र के रिश्ते को, बिन भाव तोलता है। बोलनी चाहिए मां, पर बेटी बोलती है। मां के कर्मों की, छुई-अनछुई परतें खोलती है। बोलनी चाहिए सास, पर बहू बोलती है। घर में अपने वजूद को, डांड़ी मारकर तोलती है। बोलना चाहिए नफ़ा, पर टोटा बोलता है। अंतहीन रार, रिश्तों में खटास घोलता है। बोलना चाहिए अमूल, पर रम बोलती है। सारे घर को, नाली में खोलती है। बोलना चाहिए चूल्हा, पर बरतन बोलते हैं बिना कहे ही, घर की पोल खोलते हैं। बोलनी चाहिए दादी, नानी, पर टीवी बोलता है। नवजात को अश्लील, जन्म घूंटी परोसता है।