Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग घर ही पे 18988 0 Hindi :: हिंदी
बहुत अच्छे वक्त गुजारे है ज़िन्दगी के ज़रा रुक जाई ठहर जाई ऐ घर ही पे ये भी दुख के बादल छट जायेंगे सभी के फिर निकलेंगे धुम से शहर घुमने यारों फिर बाजार सजेगा फिर मॉल खुलेंगे फिर बच्चों के किलकारियां पार्क मे गुंजेगे फिर से जल परियां वाटरफॉल मे नहायेंगी हम फिर से आँख सेकेंगे तितलियाँ फिर से मन को भाएंगी शहर फिर से भागेगी ज़रा रुक जाई ठहर जाई ऐ घर ही पे