Santosh kumar koli 30 May 2023 कविताएँ समाजिक दिनों का दुराव (छिपाव) 5914 0 Hindi :: हिंदी
शब्द का प्रभाव और, वजन कम हो गया। कहता हूं पर कोई सुनता ही नहीं, मुझे खुद पर वहम हो गया। मेरे प्रभाव का परास, अब सिमट रहा है। खूब जमाने का प्रयास करता हूं, पर जमा -जमाया ही हट रहा है। मोतबर मौत क़रीब, बोल घुल गरद गए। साहब, दिन लद गए। नज़र, नगमा, नख़रे बदले, तासीर जाने कहां गई? तोला वजूद तुला बिन बट्टा, पूरी हुई रही सही। ज़िंदगी हुई झाॅंवा, जवानी झाॅंवर गई। सौंप सिन ज़रा को, जाने कब, किस डगर गई? बाल भेला खेत, शरीर शिथिल, अंग, रद गए। साहब, दिन लद गए। दोस्तों की गई दोस्ती, दुश्मनों की दुश्मनी गई। भाव संग भाव गया, कम रही घनी गई। तरेरा -तरारा गया, बिल्ली चूहे शरण सोने लगी। जो कभी नहीं हुआ वह होने लगा, जिंदगी ज़ालिम होने लगी। अच्छे दिनों के मनके, टूट मिल गर्द गए। साहब, दिन लद गए। साहब, दिन लद गए।