Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

इह काल का संसार-संप्रति उर की विडंबना

Preksha Tripathi 22 Jun 2023 कविताएँ समाजिक 18795 1 5 Hindi :: हिंदी

संप्रति उर की विडंबना
दूजा कलुषित मन। 
तमिसावरण भविष्य का
मस्तिष्क करे क्या चिंतन? 
पामर का वासर रोष भरा। 
अकर्मण्यता का दोष भरा।
जिसके भार वहन में करती, 
डगमग् डगमग् आज धरा।। 
मानव ने मानवता का
किया आज है परित्याग। 
नर के शोणित का पान बुझाता
नर की ही क्षुधा की
जठर आग।। 
न मर्यादा न सदाचार। 
न किंचित् शेष अब सद्विचार। 
अखिल धरा पर व्याप्त हो चुका, 
कुसंस्कारों का ही दुराचार।। 

विचारों की लेखनी से
                           प्रेक्षा त्रिपाठी

Comments & Reviews

VIVEK KUMAR PANDEY
VIVEK KUMAR PANDEY ईश्वर का जबाव भले देर से मिले पर मिलता जरूर है। 🙏🥇

9 months ago

LikeReply

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: