Shiv Kishore 21 Sep 2023 ग़ज़ल दुःखद ज़ख्म *कुरेदते * गिला शिकवा* बेघर* आंखे * घर 12858 1 5 Hindi :: हिंदी
मेरे हरे ज़ख्मों को कुरेदते क्यों हो , वह ज़ख्मी हैं उन्हें उधेड़ते क्यों हो , जब तुम्हें नहीं रखना रिश्ता मुझसे कोई---- फिर उस रिश्ते का गला मरोड़ते क्यों हो । मुझे न कोई गिला है न शिकवा है कोई , तुम मुझसे बार- बार पूंछते क्यों हो । मेरी आंखे डबडबा आतीं हैं जरा - जरा सी देर में , तुम उनकी तरफ अपनी यादें छोड़ते क्यों हो । मैं तो तुमसे ज़ुदा होकर बेघर सी हो गई हूं , फिर मेरे घर की तरफ तुम देखते क्यों हो ।
7 months ago