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आखिरी खत (पहला भाग)

Uday singh kushwah 30 Mar 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत Google/yahoo/bing 84355 1 5 Hindi :: हिंदी

आखरी खत-1
   उसने एक बार फिर बावर्चीखाने में बडे़ करीने से रख्खी लहसुन प्याज की टोकरी को उतारकर;उसमें रख्खें मल मल के कपडे़ के नीचे से चार पांच खतों में से एक खत को निकालकर बडी़ नजाकत से अपने धड़कते दिल से लगाया!
      फिर बावर्चीखाने से बाहर सिर निकालकर देखा  कि सलमा के अब्बा इधर तो नही आ रहे !फिर बडी़ जोर से अपने धड़कते दिल पर हाथ रखकर ,बहुत दिनों से रोककर रख्खी रुलाई को उसने आंखों के रास्ते बाहर निकाला!
"अल्लाह,अब और कितने बरस जुदाई का वेतख्लुफ दर्द झेलना पडे़गा!" कहकर वहुत देर तक वह वेसुद- सी पडी़ रही !यही बावर्चीखाना जरीना बेगम की दुखी जिन्दगी में वक्त- वेवक्त,जाए- पनाह का काम देता है!
   सलमा सोलह की होते-होते कद काठी से बीस की दिखने लगी थी!पढ़ने लिखने में होसियार थी,इसलिए एक दिन मास्टर जी ने आकर खुद सलमा के अब्बू से कहा _"मुल्ला हजरत साहब,अब अपने गांव में आगे पढ़ने के लिए कोई स्कूल नही है;सलमा पढ़ने लिखने में होसियार है उसे आगे पढ़ने के लिए गांव बाहर दूर कस्वे में भेंजना पडे़गा और जाने आने की चिंता न करना,मैंबस वाले से कह दूंगा इधर से लेता जायेगा और उधर से लेता आयेगा!"
हाथ पर तम्बाकू मलते हुए फिर मुखातिब हुए_" मियां बस एडमीसन के पैसों की व्यवस्था करनी पडे़गी,बच्ची का जीवन सुधर जायेगा और गांव बिरादरी में तुम्हारा नाम रोशन हो जायेगा"
     उस वक्त मुल्ला हजरत कुछ नही वोले!रात को खाना खाने के बाद नबाज से फारिक होकर लेटते वक्त बेगम से मास्टर साहब की बातें कही!बेगम एक बार के लिए सकतें में आ गयी। "लड़की घोडी़ हुई जा रही है और तुम्हें गांव बाहर पढ़ने का फितूर सूझ रहा है!" कुछ सोचतें हुए फिर से वोली_"अब इसकी सहेली नूर को ही ले लीजिए!" मुल्ला हजरत ने ऐसा व्यक्त किया जैसे नूर नाम को पहली बार सुन रहे हों!सलमा की मां ने समझाते हुए कहा_"वो ही ,अब्दुल्ल मियां की वेटी दो बच्चों की मां बनी वैठी है!"फिर बडी़ देरतक मुल्ला हजरत कुछ न वोले!वस दांतों को दिया सलाई की सिलाई सेकुरींदते रहे!इतना ही वोले -"वो पीपल वाला अब्दुल हबीब  न!" और प्रतिउत्तर में बेगम के चेहरे पर निगाह गडा़ दी!"और क्या,हमारे गांव में दस बीस अब्दुल हबीव हैं?"
   मुल्ला ने सकून से विस्तर पर पैर पसारे और चुप आंख बंद कर सो रहा और सोचता रहा अब्दुल हबीव को ना घर का होस है ,न बच्चों का लड़की पता नहीं किसका खून पाल रही है,वो दो बच्चों की मां नहीं होगी तो क्या होगी?उधर बेगम देर रात तक पता नही क्या सोचती रहीं थीं?नींद आंखों से नदारद होकर कौन कौन से बंद दरवाजों के सहन के चक्कर लगा रहीं थी!बडी़ जद्दोजिद के बाद फैसला यह हुआ कि सलमा के साथ ही मंजूर सा.की नगमा का दाखिला उसी स्कूल में करवा दिया गया!जिससे दोनों लड़किया एक साथ स्कूल आ जा सकेंगीं !और मुल्ला हजरत ने बेगम को खूब समझाया कि वेटी की पढा़ई केये दो ही बरस रह गयें हैं और फिर इन्ही दो सालों के बीच कोई होनहार ,नेक नियत का लडका देखतें रहेगें!जब मिला तब तब हम लडकेक्षको रोक देगें!जैसे ही पढाई खत्म होगी निकाह पढ़वा देगें!इस बात पर जरीना बेगम मन मारकर बाहर गांव भेंजने को तैयार हो गयीं !वक्त फुर्र से उडा़ जा रहा था ! सलमा,अब नगमा के साथ कस्वे के स्कूल में वस से आतीं जातीं थीं!
             दोपहर के लिए अपना अपना खाने का डिब्बा साथ लिए जातीं थीं!
उधर जरीना बेगम ने क ई रिश्तेदारों में सलमा के रिश्ते का जिक्र चलाना शुरु कर दिया था! कोई नमक नूर वाला हुनरबंद लड़का हो तो बताना यह सब से कह रख्खी था!
       एक दिन सहन में चमेली के झुरमुट के पीछे वैठी गेंहू चुन रही थी! दोपहर के बारह साढे़ बारह बजे का वक्त रहा होगा! अब थोडा़ सा ही अनाज बीनने फटकने के लिए रह गया था!सामने देखती है काशनी सलवार वाली औरत बनारसी शाल में लिपटी,साथ में दो छौकरों और एक ठिगने कद का आदमी आकर दालान में मोढे पर आकर वैठ गया !जरीना ने बडी़ उत्सुकता के साथ देखा,फिर धुंधला सा याद आने लगा कि जब तक बनारसी शाल वाली मौहर्तमा  मुखातिब हुई -"अरे आपा ,तुमने पहचाना नहीं!"कहते हुए जरीना बेगम के पास आ वैठी! एक बार फिर झपट्टे को सभांलते हुए मुखातिब हुईश
 -"इतने अर्से बाद मिलना हुआ है,शक्ल सूरत अब पहले जैसी नहीं रही और अब नजर भी थोडी़ कमजोर हो गई है!"
कुछ देर चुप रहने के बाद -"और सब खैरियत से है न!"
जरीना उठी और उसने चाय नास्ते का इंतजाम किया!फिर लम्बी गुफ्तगू का ऐसा सिलसिला चला जो चिराग वत्ती के वक्त तक चलता रहा!बनारसी के शाल वाली मोहर्तमा  जरीना बेगम के मामू की लड़की है, जो उस वक्त कम उम्र की बच्ची थी!यह मामू के दूसरे निकाह के वक्त मामी के साथ आई थी! और इन्ही दिनों जरीना का निकाह मुल्ला हजरत के साथ हो गया था इसलिए उससे मेल मुलाकात  जरा कम हो पायी है!इसीलिए पहचानने में थोडा वक्त  लगा था!इसके तीन बेटिया और एक बेटा है,सलमा के रिश्ते के लिए आतीं है!सलमा उनको पहली ही नजर में पसंद आ गयी!लड़के को देखने की कहकर रुखसत ली थी उन्होनें! जरीना को लडके के काम धंन्धे पसंद आये!नैन नक्स भी वेहद खूबसूरत थे इसलिए रिश्ता पक्का हो गया!
     उधर सलमा के क्लास में पढ़ रहे लड़के से मोहब्बत का सिलसिला पैंगें भर रहा था,कानूनन दोनों वालिग थे!लड़के के बाप का बाजार में फर्नीचर क बहुत बडा़ कारोबार था,जिसमें लड़का उनका हाथ बटाया करता था! सलमा ने एक बार जिक्र अपनी अम्मीजान से भी किया था! पर क ई मर्तवा हम सब कुछ समझ कर मसले को नासमझ  ही कर देते है!उनके परिणाम भंयकर होते हैं! क ई बार मौके वेमौके ऐसे आये पर सलमा अपने दिल का हाल अपनी मां से नहीं कर पायी!दिल की बात जुबान तक आते आते हलक में ही रह गयी,दिल पर किसका जोर चलता है!बकरीद के चांद की चौदह तारीख के जुमेरात को निकाह होना तय हुआ ,दिन तारीख धरे गये!निकाह का बरोज रखा गया!गांव दिहात के सभी सगे संबधियों को दावत  भेजी गयी!शादी के जोडे़ के जोडे़ं भी आ गये!

Comments & Reviews

Uday singh kushwah
Uday singh kushwah बहुत बहुत शुभकामनाएं

1 year ago

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