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ऐसी कहानी-सारे गुणों का मंथन करके मैं यह बदला ने आया हूं

नरेंद्र भाकुनी 22 Aug 2023 कहानियाँ धार्मिक Ramayan, love, good day, good morning 15813 0 Hindi :: हिंदी

"" सारे गुणों का मंथन करके
मैं यह बदला ने आया हूं।
कुछ गाथा है छिपी हुई जो
मैं पृष्ठ पलटने आया हूं।
एक काव्य था रामायण
सुकेतु यक्ष की एक कहानी।
उसकी पुत्री हुई ताड़का
नैना भरे आंखों में पानी।""

एक समय में सुकेतु नाम के यक्ष राजा थे जो अत्यंत बलवान थे किंतु उन्हें कोई संतान नही थी। इसी से व्यथित होकर उन्होंने भगवान ब्रह्मा की दिन रात तपस्या की व उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए। सुकेतु ने भगवान ब्रह्मा से संतान प्राप्ति की इच्छा प्रकट की जो अत्यंत बलवान हो। भगवान ब्रह्मा ने सुकेतु की इच्छा स्वरुप उसे बलशाली संतान प्राप्ति का वरदान दिया |
भगवान ब्रह्मा के वरदान स्वरुप ताड़का का जन्म हुआ 

इसके बाद सुकेतु को ताड़का नाम की पुत्री मिली जिसमे एक हज़ार हाथियों के बराबर बल था। ताड़का अत्यंत बलवान होने के साथ-साथ सुंदर स्त्री भी थी। 

एक बार सुकेतु ने ताड़का से यह कहा  कि  पुत्री अब तुम्हारे विवाह की उम्र हो चुकी है अब तुम्हारे लिए उचित वर का चयन करने का समय आ गया है। ताड़का ने कहा पिताश्री मुझ में हजार सहस्त्र हाथियों का बल है मुझे वह पति चाहिए जो मुझसे भी अत्यधिक बलवान हो ऐसा कौन मिल सकता है उसके पिता ने कहा जब ताड़का वन की ओर विचरण कर रही थी अचानक वहां उसको एक बहुत ही ताकतवर राक्षस मेला वह बहुत बड़े पर्वत को उठाकर गिरा रहा था ताड़का ने उससे पूछा आप कौन हैं ? उस राक्षस ने उत्तर दिया _ मेरा नाम सुंद है मुझ में दो सहस्त्र हाथियों का बल है यह पर्वत मार्ग में मुझे बाधा दे रहा था ,इसलिए मैंने इसे हटा दिया। ताड़का को उस राक्षस से प्रेम हो गया और मन ही मन उसे चाहने लग गई। सुंद को भी ताड़का से प्रेम हो गया।

""मुझे याद तुम्हारे बोल
 ये बोल बड़े अनमोल।
तुम पावनी नदी की जलधारा
तुम हो अमृत की घोल।

मैं याद करूं जो तुम्हारे क्षण
क्षण संरचना के खास थे।
आज कहीं पर दूर हो मेरे
धड़कन में तुम पास थे।
 इसी क्षणों को मैंने जिया था
उन्हीं क्षणों को तोल।
तुम पावनी नदी की जलधारा
तुम हो अमृत  का घोल।

दूर से देखा मैंने तुमको
मन के मंदिर में देखा था।
तुम पूजा करने आए थे
जो हमको यही बताए थे।
मन मंदिर में पूजा हमने
इधर-उधर नहीं ढोल।
तुम पावनी नदी की जलधारा
तुम हो अमृत  का घोल।""

इस कारण सुकेतु ने ताड़का का विवाह सुंद नामक एक राक्षस से करवा दिया। सुंद व ताड़का के दो पुत्र हुए जिनके नाम सुबाहु व मारीच था जो उन दोनों की तरह बलवान थे तथा देवताओं को सताया करते थे उनकी शक्ति से ऋषि मुनि थरथर कांपते थे। ऋषि मुनियों की हत्या करना उनके लिए एक क्रीडा था।

"" ऋषि मुनियों की हत्या करना
उनको लगता था सम्मान।
भंग यज्ञ तबाही लाना
यही था दंभ अभिमान।""

सुंद राक्षस प्रवत्ति का होने के कारण ऋषि मुनियों को तंग किया करता था। वह प्रतिदिन ऋषि मुनियों के यज्ञ को ध्वस्त करना व उनकी तपस्या में विघ्न उत्पन्न करने का कार्य किया करता था। एक दिन उसने महान ऋषि अगस्त्य मुनि के आश्रम पर आक्रमण कर दिया। अगस्त्यमुनि से उसने यह कहा _" मेरे लिए एक विशाल भवन बना दो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा,
अगस्त्य मुनि ने कहा _""दुष्ट पापी डीसी मुनियों का अनादर करना तुम्हारे लिए तो सरलता है लेकिन मैं तुम्हें डर अवश्य करूंगा क्योंकि ऋषि-मुनियों से विनम्रता से बात की जाती है ना कि  अभिमान से।

सुंद राक्षस _तुम्हारी ऋषि-मुनियों का क्या मान तुम मेरे सामने कुछ नहीं हो मैं बलशाली हूं कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता।

 अगस्त्य मुनि ने यह देखकर सुंद को श्राप दिया जिसकी वजह से वह वही जलकर भस्म हो गया।
जब ताड़का को अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला तो वह अत्यंत क्रोधित हो गयी व अपने दोनों पुत्रों के साथ अगस्त्य ऋषि पर हमला करने के लिए दौड़ी। चूँकि अगस्त्य ऋषि ताड़का के महिला होने के कारण उसका वध नही करना चाहते थे इसलिये उन्होंने बिना उसका वध किये उसे परास्त किया व साथ ही उसे एक सुंदर स्त्री से अत्यंत कुरूप महिला बन जाने का श्राप दे दिया। तब से ताड़का एक नरभक्षी व कुरूप स्त्री बन गयी । ऋषि के श्राप के कारण उसके दोनों पुत्रों की भी यही दुर्दशा हुई ।

”" एक यक्षणी सुन्दर थी, अनोखा उसका रूप ।
मनी मनी जो श्राफ दे दिया, हो गई आज कुरूप।""

आप सभी ने सुना होगा कि राम जब राजकुमार थे तो उन्होंने ताड़का का वध किया था ताड़का से एक कहानी और भी जुड़ी हुई है  "वो  कहानी हैं राजा दशरथ से।"

एक बार जब राजा दशरथ देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद करने के लिए  कई असुरों से युद्ध लड़ रहे थे कई दिनों तक निरंतर युद्ध चलने के बाद काफी दूर तक चले गए लेकिन जिस जगह राजा दशरथ युद्ध करने के लिए गए थे वहां पानी तक भी नहीं था युद्ध दो राजा दशरथ जीत गए लेकिन कई दूर-दूर तक उनको जल नहीं मिला और राजा दशरथ उस समय एकांत में थे उन्होंने पानी _पानी कहकर पुकारा।

वहां उस समय कोई ना था अचानक वहां आकाश मार्ग में  राक्षसी ताड़का उड़ रही थी उसने देखा एक पुरुष धरती पर त्राहि-त्राहि कर रहा है उसको उस समय राजा दशरथ से शत्रुता नहीं बल्कि दया आ रही थी और राक्षसी ताड़का ने कहीं दूर तक उड़कर उनके लिए जल खोजा और उनको वहीं पर जल पिलाया और राजा दशरथ के प्राण बच गए।

राजा दशरथ उस समय ताड़का से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए उन्होंने कहा आपने मुझे प्राण दान दिया है इसलिए आप मुझसे कोई वरदान मांग ले, ताड़का ने कहा _ "हे राजन मुझे आपका १४वर्ष तक सिंहासन चाहिए।

राजा दशरथ ने कहा _"हम भी राजा सूर्यवंशी हैं जो वचन देते हैं उसको निभाते हैं आप हमारे सिंहासन पर विराजमान हो जाइए केवल १४वर्ष तक।""

ताड़का ने कहा _" समय आने पर ले लूंगी तब तक आप अपना राज्य सुचारू रूप से चलाइए।"

इसके बाद अगस्त्य मुनि के प्रकोप से बचने के लिए ताड़का अपने दोनों पुत्रों के साथ अयोध्या नगर में सरयू नदी के किनारे वन में आकर रहने लगी। उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए उस वन के सभी ऋषि मुनियों को सताना शुरू कर दिया। अब वह और उसके दोनों पुत्र अपनी शक्ति से वहां के ऋषि मुनियों को मारकर खा जाते थे व उनके यज्ञ में बाधा पहुंचाते थे। ताड़का के प्रकोप के कारण उस सुंदर वन को भी ताड़का वन  के नाम से जाना जाने लगा।
उसी वन में महान ऋषि विश्वामित्र की भी कुटिया थी जो प्रतिदिन यज्ञ करके दैवीय अस्त्रों इत्यादि का निर्माण किया करते थे किंतु ताड़का व उसके दोनों पुत्रों के द्वारा उनके यज्ञ में निरंतर बाधा उत्पन्न की जा रही थी जिस कारण वे अपना यज्ञ पूरा नही कर पाते थे व अस्त्रों का निर्माण कार्य भी रुक जाता था । एक दिन जब वे महत्वपूर्ण यज्ञ कर रहे थे तब सुबाहु व मारीच ने आकर उनका यज्ञ विध्वंस कर दिया। यह देखकर महर्षि विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित हो गए।

जब विश्वामित्र अयोध्या नरेश दशरथ से सहायता मांगने गए 
चूँकि विश्वामित्र के पास इतना पराक्रम व अस्त्र शस्त्र थे जिससे वे स्वयं ताड़का व उसकी सेना का नाश कर सकते थे लेकिन अपनी प्रतिज्ञा के कारण वे ऐसा नही कर सकते थे। इसलिये वे अयोध्या के राजा दशरथ के पास सहायता मांगने के लिए गये व उनसे उनके बड़े पुत्र राम को अपने साथ चलने को कहा। दशरथ ने विश्वामित्र जी के साथ राम व उनके छोटे भाई लक्ष्मण को उनकी सहायता के लिए भेज दिया।

तत्पश्चात अयोध्या के दोनों राजकुमार राम व लक्ष्मण विश्वामित्र के आश्रम की सुरक्षा करते थे । एक दिन जब विश्वामित्र जी अन्य ऋषि मुनियों के साथ यज्ञ कर रहे थे तब सुबाहु व मारीच उन पर आक्रमण करने आये। भगवान श्रीराम ने अपने धनुष बाणों से सुबाहु का वध कर दिया व मारीच को घायल कर दूर दक्षिण दिशा में समुंद्र के पास गिरा दिया।

इसके बाद महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को ताड़का का वध करवाने के लिए लेकर गए। शुरू में भगवान राम ताड़का का वध करने से हिचकिचाएं क्योंकि धर्म उन्हें स्त्री हत्या की अनुमति नही देता था किंतु महर्षि विश्वामित्र ने उन्हें ताड़का का वध करने का आदेश दिया। चूँकि ब्राह्मण की आज्ञा का उल्लंघन नही किया जा सकता था इसलिये भगवान श्रीराम ने अपने बाणों से ताड़का का वध कर दिया।
 
ताड़का का वध करने के बाद श्री राम ने ताड़का की हड्डियों का अपने लिए उसका खड़ाऊ बनाया। उसकी जो हड्डियां थी वह काफी मोती के समान चमकते थे प्रभु राम को वह बहुत ही अच्छे लगे इस कार्य में उनकी सहायता देव शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। बाद में जब अयोध्या में श्री राम को १४ वर्ष का वनवास हुआ था तब उन्होंने ताड़का की हड्डियों का जो खड़ाऊ बनाए थे , उन्हीं को पहना था। बाद में जब राम भरत मिलन हुआ था तब भरत अपने सिर पर जो खड़ाऊ अयोध्या में लाए थे वही राम की स्तुति करने के लिए सिंहासन पर रखे थे अर्थात सूर्यवंशी राजाओं का कथन कभी मिथ्या नहीं जाता।

भगवान राम के द्वारा वध करते ही ताड़का को अगस्त्य मुनि के श्राप से मुक्ति मिली व साथ ही इस कुरुप व नरभक्षी रूप से भी मुक्ति मिली। स्वयं भगवान विष्णु के द्वारा वध होने के कारण ताड़का को मोक्ष भी प्राप्त हुआ।

नरेन्द्र भाकुनी
एम. ए हिंदी , इतिहास (बी.एड)

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