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" चाय पार्टी "

Archana Singh 17 May 2023 कहानियाँ समाजिक 8028 0 Hindi :: हिंदी

नमस्ते दोस्तों 🙏🙏

आयुष पिछले 1 घंटे से अपनी मम्मी को कॉल कर रहा था , पर उसकी मम्मी उसका कॉल उठा ही नहीं रही थी ।

तभी उसके पापा पंकज घर में आते हैं ।

वो गुस्से में बोला : "  देखिए ना पापा ! मम्मी मेरा कॉल उठा ही नहीं रही है ।  दादी कब से घर में अकेली बैठी हुई है । हम दादी को यहां लाए थे कि हम उनके साथ खूब इंजॉय करेंगे ,उन्हें कभी अकेलापन महसूस नहीं होने देंगे , पर मम्मी तो शाम 4:00 बजे से गई है और अब 7:00 बज गए अभी तक नहीं आई है  " ।

पंकज : " पर तुम्हारी मम्मी कहां गई है "...?

"  वो आज मम्मी का किटी पार्टी था , तो अपने सारे दोस्तों के साथ किटी पार्टी करने किसी रेस्टोरेंट में गई है  ।

गुस्से में पंकज बोला  : " इन्हें तो कोई काम है नहीं , बिना मतलब के किटी पार्टी करती रहती है और अपना सारा समय इसी में बरबाद कर देती हैं  " ।

तरला ( पंकज की मां ) अपने बेटे और पोते की बातें बैठे-बैठे सुन रही थी ।
फिर शांति से बोली : "  आयुष बेटा !  इधर आ।
 उसे अपने हैं बगल में बैठा कर बोली  :" तू जानता है जब तुम्हारे पापा छोटे थे तो मैं भी किटी पार्टी किया करती थी  । 
उस समय इसे किटी पार्टी नहीं कहते थे बल्कि " चाय पार्टी " कहते थे ।
 हम सब मोहल्ले की औरतें महीने में किसी एक रविवार को किसी एक के घर इकट्ठा होते थे और घंटो बातें किया करते थे ।
उस समय हमारे पास चाय के साथ-साथ  " पारले जी " बिस्किट हुआ करती थी ।
हां कभी-कभी किसी के घर " प्याज की पकौड़ी" रहा करती थी और हम सब साथ बैठकर खूब हंसी - मजाक करते , बहुत तरह की बातें किया करते थे .... 
क्योंकि रोज - रोज एक ही समय सारणी के अनुसार हमारा जीना था । 
सुबह उठो बच्चों को स्कूल भेजो , पति को ऑफिस भेजो , घर की साफ - सफाई करो ,
खाना बनाओ , कपड़े धोओ ,,,, वगैरा-वगैरा ,,,, सुबह से शाम एक ही एक तरह की जिंदगी रोज जीते थे । 
कोई कोई औरत तो अपनी इस जिंदगी से बहुत मायूस और निराश भी  हो गई थी । उदासी रहने लगी थी ।
तभी हम लोगों ने मिलकर ये सोचा कि महीने में एक बार ही सही पर हम अपने घर में "चाय पार्टी " रखेंगे ------ और फिर क्या तीन - चार घंटे मस्त फ्री हो कर के हम गप्पे मारा करते थे और हम उसी से खुश रहते थे ।
आज तुम्हारी मां भी तो वही कर रही है बेटा !फर्क सिर्फ इतना है कि अब वो  " चाय पार्टी "
से " किटी पार्टी " हो गई है और हमारे छोटे से घर से वो  रेस्टोरेंट हो गई है ,,,, पर भावनाएं और इच्छाएं तो सभी औरतों के एक ही हैं ।
 तो उसे भी अपनी जिंदगी जीने दे ....
क्योंकि जिंदगी की इस भागदौड़ में जो समय निकल जाते हैं उन समय को फिर से लौटाया नहीं जा सकता  ।

तरला ने इतने अच्छे से समझाया कि आयुष और पंकज दोनों बहुत खुश हो गए ।

 कहते हैं दोस्तों ! पहले की औरतें ज्यादा पढ़ी-लिखी और समझदार नहीं होती थी ,  पर पहले की औरतों को अपने परिवार को बांधकर रखने की कला बखूबी आता था ।

 तभी घबराई हुई ,,,,, थोड़ी डरी हुई ,,,,
आयुष की मम्मी आई ,,,, आज बहुत देर हो गई है "...... और वो अपने पति  पंकज का चेहरा देखने लगी ।

 तरला बोली : " कोई बात नहीं बहू  , होता है कभी-कभी  " ।

पंकज भी तुरंत बोल पड़ा :"  हां --- हां  !
आज तो बहुत ज्यादा ट्रैफिक भी था  , मैं भी तो अभी ही  सब्जियां लेकर आ रहा हूं  ।
चलो  ! अब आ ही गई हो तो गरमा - गरम एक कप चाय और कुछ प्याज की पकौड़िया बना दो पुराने दिनों की याद ताजा हो जाएगी "....और सभी एक साथ हंस पड़े ।

धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏💐💐

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