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दिव्यांग मजबूरी नहीं ताकत है

Komal Kumari 12 Sep 2023 कहानियाँ समाजिक 21875 0 Hindi :: हिंदी

किसी ढोलकपुर गांव में रीमा नाम की एक दिव्यांग लड़की रहती थी। जो पैर से अपंग थी। उसके माता-पिता रोज कमाने खाने वाले मजदूर थे ।रीमा अपने घर का सारा काम खत्म कर स्कूल बड़ी मुश्किल से पढ़ाई करने जाती थी। रीमा पढ़ने में बड़ी तेज थी पर स्कूल में अपंग होने के कारण उसको कोई दोस्त नहीं बनते थे जिससे वह बहुत दुखी रहती थी।
एक दिन की बात है रीमा स्कूल जा रही थी रास्ते में उसे कई लोग मिल गए जो उसे कहने लगे-" अरे रीमा स्कूल जाकर क्या करेगी तेरा तो  पैर ही सही नहीं है घर जा और घर के कामकाज कर ,पता नहीं कौन करेगा तुझसे शादी और तेरे मां-बाप भी कैसे हैं जो तुझे पढ़ रहे हैं"। यह सुनकर रीमा रोने लगी रीमा बिना कुछ कहे वहां से स्कूल चले गई।
स्कूल से आते ही रिमा ने यह सारी बात अपने माता-पिता को बताई।उसके माता पिता यह सब बाते  सुन कर कहने लगे-"बेटी तू यह सब बातो पर ध्यान मत दे तू बस अपने पढ़ाई और अपने सपनो को पूरा करने पर ध्यान दे, हम तेरे साथ हैं। " 
यह सुनकर रीमा बहुत खुश हुई और वह पढ़ाई करने चली गई।समय बीतता गया और रीमा लगन से पढ़ने लगी।
रीमा 24 साल की हो गई।आसपास के लोग रीमा के माता पिता को देख कर उनका और रीमा का मजाक उड़ाने लगे।रीमा के माता पिता ने बिना कुछ कहे वहा से चले गए।
रीमा ने मास्टर ऑफ़ आर्ट्स(M.A) हिन्दी से किया और NET का परीक्षा में उत्तीर्ण होकर अपना शिक्षिका बनने का सपना पूरा कर अपने माता पिता का सर गर्व से ऊंचा कर दिया।
जो आसपास के लोग रीमा और उसके माता-पिता का मजाक  उड़ाते थे आज वही उनका सम्मान करते हैं।
संदेश- हर किसी आदमी में कमी होती है, उस कमी को अपनाओ और उसको ताकत बनकर अपने सपने को पूरा करो।
बस मैं इस कहानी के  माध्यम से यह कहना चाहती हूं कि -"रीमा के माता पिता के तरह हमें भी अपने बच्चे को कमी के साथ अपनाना चाहिए और हमेशा उसका साथ देना चाहिए ताकि वह अपने जीवन में कुछ बन जाए और देश का नाम रोशन करे।
 पर हम ऐसे बहुत कम परिवार देखे हैं जो अपने दिव्यांगों बच्चो की साथ देते है।वरना अधिकतर तो, हमेशा उन्हे ताना देते है कभी रिश्तेदार तो कभी समाज के डर से और ना की उन्हे आगे बढ़ाने नहीं देते, इस वजह से वह आत्महत्या कर लेते हैं।
हमें हमेशा ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिएऔर मिल जूल कर रहना चाहिए।
दिव्यांग लोग नही उनकी सोच होती है,यही कह कर  मैं अपनी वाणी को समाप्त करती हूं।

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