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लघुकथा- हम साथ साथ हैं

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक short Story 10151 0 Hindi :: हिंदी

केंटीन में परेश को उदास देखकर सौरभ पूछा,"क्या बात है? उदास क्यों बैठे हो?"

परेश अपनी उदासी को छुपाते हुए प्रतिप्रश्न किया,"ऐ बताओ। तुम्हारे मम्मी-पापा किसके साथ रहते हैं?"

सौरभ गिलास का पानी उठाते हुए जवाब दिया,"हम दोनों भाइयों के घर, बारी-बारी से। मां छह माह मेरे घर रहती है, तो छह माह पिताजी रहते हैं। हम भाइयों में यही सुलह हुआ है।"

"...और तुम्हारे माता-पिता" अब, सौरभ, परेश से जानना चाहा, तो परेश बोला,"पिताजी तो नहीं हैं। वे चल बसे हैं। माता है। पर, वह मेरे पास कम, मेरी बहनों के पास ज्यादा रहती है। यही चिंता का विषय है।"

 इतने में, सहकर्मी कामेश केंटीन पहुंचा और नास्ते का आर्डर दिया। उसे देखकर सौरभ उसकी ओर मुखातिब हुआ,"तुम्हारे माता-पिता कहां रहते हैं, कामेश।"

"घर में।...और कहां?"कामेश मग का पानी गिलास में उड़ेलते हुए निश्चिंतता से जवाब दिया।

"घर में तो सभी रहते हैं मेरे भाई! आई मीन। वे तुम्हारे घर में रहते हैं या तुम्हारे भाइयों के घर में।"

"नहीं जी! वे हमारे घर में नहीं, हम भाई उनके घर में रहते हैं। हमारा परिवार संयुक्त है। हम साथ-साथ रहते हैैं।"

बेतकल्लुफी से दिया गया यह जवाब परिवार का असल भावार्थ सुना गया। इसे सुनकर सौरभ व परेश का दिमाग ठिकाने लग गया। 

वे एक-दूसरे को देख-देखकर तब तक बगलें झांकते रहे, जब तक वे वहां बैठे रहे।
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टीप-अनुरोध है कि रचना पढ़ने के उपरांत लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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