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लघुकथा- वचन

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Short Story 9953 0 Hindi :: हिंदी

	सक्सेनाजी की पत्नी जब से स्वर्ग सिधारी है, उनका बुरा हाल है। टाईमटेबल गड़बड़ा गया है। न दिन को चैन मिल रहा है, न रात को आराम। 

उनका कहना है कि जब उसका ख्याल रखनेवाली नहीं रही, तब वह किसके लिए जीए और मरे।
 
जब बेटा-बहू पराये जैसा बर्ताव करते नहीं अघाते, तब वह किसे अपना मानकर चले? 

हालांकि उनके तीनों बेटा-बहू उनको अपने पास रखते हैं, लेकिन अपनी दुनिया में खोये भी रहते हैं। 

वक्त-जरूरत बात तक पूछते नहीं। कभी-कभी तो बात तक नहीं होती उनमें।
 
कोई घटना घटती है या खरीदारी की जाती है, तो उसको बाद में बताकर महज औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। 

पत्नी की मृत्यु के बाद उसके तीनों बेटा-बहू में तय हुआ है कि वे तीनों उन्हें दो-दो माह बारी-बारी से रखेंगे।
 
जिसकी बारी समाप्त होगी, वह एक तारीख को दो माह के लिए अगले भाई के घर पहुंचा देगा। 

इससे किसी को असुविधा नहीं होगी। किसी पर बोझ नहीं पढ़ेगा। पिताजी का दिन घूमते-फिरते यूं ही मजे से कट जाएगा।
 
सक्सेनाजी तीनों बेटों के घर पहले राउंड में ही अपमानित महसूस करने लगे थे। उक्ताने लगे थे।
 
उनका मन बंधन में रहने को तैयार नहीं हुआ। वे खुले व उन्मुक्त विचारों के जो थे।
 
उनकी साफगोई बेटा-बहू को चुभती थी। यह बात वे दिल की गहराई तक समझ चुके थे।

जब उनकी पत्नी थी, तब वे पुस्तैनी घर में मजे से रहा करते थे। उनके बच्चे माह-दो-माह में घर आकर हालचाल पूछ जाया करते थे। 

पत्नी के रहते, उसे किसी बात की फिक्र नहीं रहती थी। तब सुखी था वह।
 
लेकिन, अब उनका खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना, उठना-बैठना और आराम करना मुहाल हो गया है।
 
वे बूढ़े भी ज्यादा दिखने लगे हैं। बाल पक गए हैं। कई दांत टूट चुके हैं, बाकी टूटने के कगार पर हैं। कमर झुकने लगा है। हाथ कांप रहे हैं। आंखे देखने से इंकार करने लगी हैं। चेहरे पर झुर्रियां दिख पड़ती है।

उनके कान जवाब दे रहे हैं। उन्हें कुछ सुनना होता है, तो कान देकर सुनना पड़ता है। इसलिए वे ‘भैरे’ कहलाने लगे हैं। 

	एक दिन, तीसरे बेटे करण के आफिस से नए-नवेले मित्र उनके घर आए। 

वे घर का मुआयना कर बैठक में चाय-नाश्ता करने लगे। घर उन्हें बढ़िया व साफ-सुथरा लगा। 

तभी एक हाथ में किराना सामान और दूसरे हाथ में सब्जी का थैला लिए सक्सेनाजी का घर में प्रवेश हुआ।

बेटे के मित्रों ने इन्हें देखकर पूछा,‘‘कौन है ये?’’
	करण जवाब देना और परिचय करवाना चाह ही रहा था कि सक्सेनाजी सामान लेकर अंदर चले गए।
 
वे सारे सामान को यथास्थान रखकर वापस लौटे, ‘‘पहले पिता हुआ करता था, अब पिता कम नौकर हूं। मुझसे घर का काम करने की उम्मीद तो की जाती है, लेकिन पिता की तरह देखभाल करना, गंवारा नहीं किया जाता। यही परेशानी है’’

	यह सुनकर करण सन्न रह गया। उसको लगा कि उसके पापा उससे बेहद खफा हैं।
 
मित्रों के जाने के बाद करण ग्लानि महसूस करते हुए अपने पापा से पूछा,‘‘क्या बात है पापा? आप हमसें नाराज लग रहे हैं।’’

	‘‘नाराजगी इसी बात का है बेटा कि मेरे बच्चे अब मुझे तवज्जो नहीं देते।’’ सक्सेनाजी ने सर उठाकर दृढ़ता से कहा। 

उसकी साफगोई काम कर गई, जो करण के दिल को लगी।

	वह अपनी गलती स्वीकारते हुए वचन दिया,‘‘अब से ऐसा नहीं होगा पापा। हम चारों भाई आपके मान-सम्मान की पूरी रक्षा करेंगे। यह मेरा वादा रहा।’’
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला  veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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निवेदन है कि लेखक की अन्य रचनाओं का अध्ययन करने और उसको प्रोत्साहन देने के लिए ‘‘गूगल प्ले स्टोर’’ से ‘‘प्रतिलिपि एप’’ डाउनलोड कर ‘‘वीरेंद्र देवांगन’’ के नाम से सर्च किया जा सकता है और लेखक की रचनाओं का आनंद उठाया जा सकता है।

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