akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक भारतीय युवा हमारी संस्कृति को भूलकर विदेशी संस्कृति अपना रहे हैं जो कि समाज के लिए भविष्य में घातक सिद्ध होगी 28944 0 Hindi :: हिंदी
* नई जनरेशन * रंग ढंग नई जनरेशन के हमको समझ न आए । सदी बीस को छोड़ के ये इक्कीसवीं सदी में आए ।। देर रात तक जगने की आदत इनके मन भाए । नौ बजे के बाद ही इनकी गुडमॉर्निंग हो पाए ।। शर्ट-पेंट ये नहीं पहनते इन्हें टी शर्ट -जीन्स ही भाए । फटी जीन्स दाड़ी कपड़ों में कूल लुक कहलाए ।। चाचा -चाची बुआ -फूफा कहने में ये शर्माएं । बोलकर अंकल -आंटी सबको ये मार्डन कहलाएं ।। छोटी जगह में रहना इनको बड़ा कष्ट पहुंचाए । देख शहर की चकाचौंध इन्हें शहर में रहना भाए ।। हिन्दी बोलन में शर्माएं अंग्रेजी गले लगाएं । अपनी माता को छोड़ के ये स्टेप मदर अपनाएं ।। रिश्ते नाते नहीं मानते दोस्त ही मन में भाए । अपनों से ये बात करें न दूजों से बतयायें ।। पापा-मम्मी नहीं बोलते मोम डेड कहलाएं । भाई बहिन आपस में सिस -ब्रो बन जाएं ।। घर परिवार के रिश्तों और बूढ़ों से ये कतराएं । रिश्ते वही निभायें जो इनके मन को भाएं।। बड़ों के पैरों को छूने में इनको शर्म है आए । हैलो हाय करके ये अपना शिष्टाचार निभाएं ।। बर्थ डे घर में नहीं मनाते होटल में ये जाएं ।। घर के देशी व्यंजन छोड़ ये पिज़्ज़ा बर्गर खाएं ।। चाय -छांछ पीने वाले तो बेक वर्ड कहलाएं । सिगरेट और शराब पियें तो फारवर्ड बन जाएं ।। खेलकूद का मतलब इनको समझ न आए । नेट -टेब मोबाइल में इनका समय पास हो जाए । बड़ी विडंबना है इनकी अब इन्हें कौन समझाए। विश्व में भारत की संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठ कहलाए ।।
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