Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #दरकार 87410 0 Hindi :: हिंदी
कविता = ( दरकार ) निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! पेट को रोटियों की है दरकार !! खाली ख़ज़ाना नहीं चलती सरकार ! भूखे पेट भजन कैसे होए मेरे यार !! सब कुछ बिकता है यहाँ ! यह दुनिया है एक बाज़ार !! खाली जेब यहाँ कुछ ना मिलता ! बिन पैसे रिश्ते भी हैं। यहॉं बेकार !! निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! पेट को रोटियों की है दरकार !! पेट भरा जग हरा ! हुआ चाँद का दीदार !! कहीं सेवा के नाम पर ! बोटियों के तलबगार !! कहीं भूख से बिलखता बच्चा ! कहीं रोटियों का अंबार !! सेवा के नाम पर सजा बाज़ार ! सच बोला मैं ग़द्दार !! निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! पेट को रोटियों की है दरकार !! वाह रे मेरी दिल्ली सरकार ! सबको दे दिया रोज़गार !! दिल्ली नागरिक सुरक्षा भर्तियों की भरमार ! अब न है कोई बेकार !! एक रोटी टुकड़े हज़ार ! छिन - छानकर खालो यार !! यह है आपकी सरकार ! टुकड़े फेंको बेड़ा पार !! निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! पेट को रोटियों की है दरकार !! कोरोना योद्धा का मिला सम्मान! कोरोना काल में लगा दी जान !! कोरोना को दिया पछाड़ ! कोरोना से न मानी हार !! निष्काम सेवा करी अपार ! अब रोड पर है परिवार !! कोरोना योद्धा बेरोज़गारी से रहें हैं हार ! अब कब जागेगी सरकार !! निष्काम सेवा से नहीं चलता परिवार ! पेट को रोटियों की है दरकार !! ( विपिन बंसल )