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दीप दीप दीपों की माला

बी.पी.शर्मा 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक दीपावली पर कविता 8631 0 Hindi :: हिंदी

जगमग-जगमग दीप जले तब
घर-घर बंदनवार सजे हां
       जगत तिमीर हरे मन रोशन करती
       भाव-भाव नगर सजे हां 
स्नेह प्यार मर्यादा लेकर 
हां धरती को ये अर्पण करती
        धर्म ध्वजा से जलते दीपक 
        हां मानव हित ये ऊर्जा भरती
खुशी उमंग ये करुणा लेकर 
हां घर-घर में ये समता जलती
         लड़ी लड़ी अब कण-कण से पूछें 
         हां भाव भरा अभिनंदन करती
अक्षय अटल हो विश्व पटल पर 
हां दीप-दीप की माला जलती
          जग अंधियारा आज मीटे अब 
          हां अमृत जल ये वर्षा करती
दीप-दीप दीपों की माला 
हां अंतर्मन संवर्धन करती
           आज समाहित मन दीपों की गंगा 
           हो निश्छल प्रेम सदा सुख करती
       
                      रचनाकार-B.P.Sharma
                     नोखा (बीकानेर)


              

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