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बी.पी.शर्मा

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@ b.p.sharma
, Rajasthan

साहित्य प्रेमी

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जगमग-जगमग दीप जले तब घर-घर बंदनवार सजे हां जगत तिमीर हरे मन रोशन करती भाव-भाव नगर सजे हां स्नेह प्यार मर्यादा लेकर हां धरती को य� read more >>
वो अल्हड़ नटखट भी क्या जीवन था हां भरी दुपहरी सावन था अंबर का वैभव कदमों में हां उस पार जमाना अपना था उमंगे तन भावों में पलटी read more >>
कविता "अद्भुत सावन" सावन मास बड़ा निराला। हां पल पल में घटाएं छाती।। थे बिन पानी मुरझाए चेहरे। कब धरती भी read more >>
धन दौल्त कब मांगा उसने हां नारी प्रेम पुजारी थी। क्यों समझें हम अबला उसको वो सदियों से महारानी थी।। हम सत्य शील की बातें समझें अनुसु� read more >>
संस्कृति स्वाभिमान सांतरो, ओ हरदम ही गुमान छे। सोना उगले रेत अठेरी, ओ जन्म जन्म कुर्बान छे। कर्मा ने म्हे कण कण तोलां, आ पुरखा read more >>
योग माया योग से,तू योग को ही धारती सत की स्थापना,तू मूल को उबारती महा प्रताप पुण्य मां,तू वंश वंश तारणी शुंभ और निशुंभ भी, तू ही का� read more >>
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