Manasvi sadarangani 09 Mar 2024 कविताएँ समाजिक Women's day 2120 0 Hindi :: हिंदी
लड़की से बन जाती हूं मैं महिला, जब जिम्मेदारी मुझ पर आती है, अपने साथ-साथ पता नहीं कितनों की, देखभाल मुझको करनी पड़ जाती है। यह उम्र का पहिया भी बहुत ही तेज चलता है, लड़की से महिला का सफर बड़ा कठिन सा लगता है । पता नहीं चलता कब दो हाथ से, आठ हाथों वाली दुर्गा माता हम बन जाते है। एक ही समय पर पता नहीं, कितने काम हम एक साथ कर जाते हैं। पहले अपनी अलमारी जमाए हुए ही महीनों बीत जाते थे, आजकल अलमारी ही नही पूरे घर को हम सजाते हैं। पहले चाय का मजा कंबल में बैठ ले पाते थे, अब सुबह सब की चाय हम ही बनाते हैं। वो जमाना क्या सुहाना था जब, अलार्म बज बज कर खुद ही बंद हो जाता था, पर नींद हमारी कोई खोल नही पाता था, मगर अब तो अलार्म ही हमारा वजूद बन जाता है, और समय से पहले ही डराकर उठा जाता है। महिला बन एक फायदा सबसे ज्यादा नजर आता है, घर के हर कोने में राज हमारा ही नजरआता है, जब तक चुप है, तब तक हुकुम सब चलाते है, एक बार अगर काली बन जाए, तो देख हमें सब घबराते है, इसी खुशी में चलो आज हम women's day मनाते है। HAPPY WOMEN'S DAY TO ALL